9 अगस्त 2023 को राहुल गांधी ने केंद्र सरकार को मणिपुर मामले पर घेरते हुये कहा था की बीजेपी ने मणिपुर में भारत माता की हत्या की है तब केन्द्रीय मंत्री और सांसद स्मृति ईरानी ने पूरे कांग्रेस की पोल खोल कर रख दी की कैसे 90 के दशक में कश्मीर में कश्मीरी पंडितों पर जुल्म होता रहा उन्होंने गिरिजा टिक्कू की घटना का जिक्र किया था जिसको जिन्दा आरी से बीच से काटा गया था और सबसे बड़ी बात ये की उस वक्त की कांग्रेस सरकार ने इस घटना पर मौन धारण कर लिया |
आपको लोगों के मन में भी ये बात घूम रही होगी की ये गिरिजा टिक्कू कौन है इस क्राइम स्टोरी को मै लिखना नहीं चाहता था लेकिन ये ऐसी घटना है जिसे आप सब को जानना चाहिए की कैसे उस वक्त की कांग्रेस सरकार और अन्य पार्टियों ने सिर्फ अपने वोट बैंक के लिए पर मौन धारण कर लिया |
कश्मीर में जब एक आर्मी अफसर ने एक पत्थर बाज को जीप पे बांधा तो मानवधिकार की बातें हुयी थी लेकिन 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के बर्बर तरीके से किये गये नरसंहार के बारे में मानवाधिकार की बाते तक नही हुयी यहां तक की इस नरसंहार को मीडिया में भी नही आने दिया गया उन्ही में से एक घटना है 25 वर्षीय महिला गिरिजा टिक्कू की घटना की जिनके साथ ऐसी बर्बरता हुयी जिसको यहां शब्दों में बया नही किया जा सकता इस घटना को जब आप पढ़ रहे होगे तब आप ये सोचेंगे की कैसी सरकार थी जिसने ऐसा होने दिया आईये जानते है कौन थी गिरिजा टिक्कू |
Girja Tikku :
सन 1990 का दशक कश्मीर
में मस्जिदों से घोषणा की जाती है की जितने भी पंडित है वो कश्मीर छोड़ दे या तो
इस्लाम अपना ले उस वक़्त देश में कांग्रेस की सरकार थी बारामूला जिले के अरीगाम
गांव की रहने वाली 25 वर्षीय महिला गिरिजा
टिक्कू एक सरकारी स्कूल में लैब असिस्टेंट होती है 90 के दशक में जब हालत बिगड़ते
है और लाखों कश्मीरी पंडित पलायन करते है और न जाने कितने ही पंडितों का क़त्ल कर
दिया जाता है तब गिरिजा टिक्कू भी पलायन कर जाती है वो अपने परिवार सहित अपने एक
रिश्तेदार के यहां रहने लगती है |
गिरिजा टिक्कू की एक
मिलने वाली दोस्त का फ़ोन आता है की सैलरी आ गयी ले जाओ आकर अब तो हालात भी सामान्य
हो गये है गिरिजा टिक्कू को पैसे की जरूरत होती है क्योकि जब उनके परिवार ने पलायन
किया था उस वक्त वो अपने घर से कुछ भी लेके नहीं आयी थी |
11 जून 1990 :
11 जून 1990 को गिरिजा
टिक्कू अपनी सैलरी लेने जाती है स्कूल से सैलरी लेने के बाद वो अपने स्टाफ से
मिलने उनके घर भी जाती है उनको ये अहसास नहीं होता है की आतंकवादी उनपर नजर रख रहे
है |
गैंगरेप के बाद बहुत बेरहमी से किया गया क़त्ल :
जब वो घर वापस जा रही होती है तो आतंकवादी उनको एक टैक्सी में पकड़ कर ले जाते है आतंकवादियों की संख्या 5 के ऊपर रही होगी आतंकवादी उनको एक सूनसान जगह पर ले जाते है जहा पर उनके साथ गैंग रेप किया जाता है और फिर उनको जिन्दा आरी से काटा जाता है उसके बाद उनके नग्न शव को रोड किनारे फेक दिया जाता है |
अब गिरिजा टिक्कू की बात
तो कर ली है एक और घटना की बात कर लेते है वो है सरला भट्ट की इनके भी साथ यही हुआ
और इसे भी कांग्रेस सरकार ने बड़ी चालाकी से छुपा लिया |
आईये जानते है कौन थी सरला भट्ट :
सरला भट्ट अनंतनाग की
रहने वाली थी वो शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में बतौर नर्स तैनात
थी |
14 अप्रैल 1990 को सरला भट्ट को किया गया किडनैप :
14 अप्रैल 1990 को सरला
भट्ट को मेडिकल कालेज से जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट आतंकी संगठन द्वारा किडनैप कर
लिया जाता है आतंकवादियों ने उनके साथ कयी दिनों तक रेप किया फिर उनके शव को कयी
टुकड़ो में काट कर 19 अप्रैल 1990 को श्रीनगर के डाउनटाउन में फेंक दिया |
बटाला हाउस एनकाउंटर पर
आतंकवादियों के लिये आंशू बहाने वालों को कभी कश्मीरी पंडितों का दर्द नही दिखा
क्योंकि सभी पार्टियों को एक धर्म विशेष का वोट चाहिये था |
हम लोग ये जानते है की
कश्मीर में पंडितों पर जुल्म की शुरूआत 1990 में हुयी लेकिन ये भी सच नही है इसकी
सुरुआत तो उस वक्त हो गयी थी जब गुलाम मोहम्मद ने अपने जीजा फारुख अब्दुल्ला से
कुर्सी छीन ली और खुद मुख्य मंत्री बन गये ये वर्ष था 1986 |
कट्टरपंथी संगठनों ने कश्मीरी पंडितों को घोषित किया काफ़िर :
कट्टरपंथी संगठनों ने
कश्मीरी पंडितों को काफिर घोषित कर दिया ये 1990 का वर्ष था जब आतंकवाद पूरे चरम
पर था एक बात और यहां पे बताते चले की कश्मीर के पंडित एक मात्र हिन्दू थे जो
कश्मीर के मूल निवासी थे मस्जिदों से ऐलान होने लगा की जितने भी काफिर है या तो वो
कश्मीर छोड़ दे या फिर मुस्लिम बन जाये अगर ऐसा नही किया तो उनका क़त्ल कर दिया
जायेगा 90 के दशक में कश्मीर में हर सरकारी नौकरी में कश्मीरी पंडित थे |
वर्ष 1986 गुलाम मोहम्मद ने किया ऐलान :
वर्ष 1986 में फारुख
अब्दुल्ला के साले व तत्कालीन मुख्यमंत्री ने ऐलान किया की एक पुराने मंदिर को
गिराकर वहा पर भव्य मस्जिद बनायी जाएगी गुलाम मोहम्मद के इस खतरनाक ऐलान के बाद
दक्षिण कश्मीर और सोपोर में दंगे भड़क गये दंगे भड़कने की वजह सिर्फ ये थी की गुलाम
मोहम्द के ऐलान के बाद कश्मीरी पंडितों ने इसका विरोध किया था इन दंगो में न जाने
कितने कश्मीरी पंडितों की ह्त्या कर दी गयी इन दंगो में कितने कश्मीरी पंडित मारे
गये इसका आंकड़ा आज तक उस वक्त की कांग्रेस
सरकार ने देश के सामने उजागर नही किया |
राज्यपाल ने बर्खास्त की सरकार :
12 मार्च 1986 को उस वक्त के राज्यपाल जगमोहन मल्होत्रा ने गुलाम मोहम्मद की सरकार को बर्खास्त कर दिया कट्टरपंथीयों को ये बात बहुत नागवार जगुरी उसके बाद उन्होंने 14 सितंबर 1989 को टीका लाल टिक्कू की सरेआम हत्या कर दी और ये ऐलान कर दिया की कश्मीर उन्हें बिना हिन्दुओं के चाहिए टीका लाल टिक्कू की हत्या के बाद रिटायर्ड जज नीलकंठ की भी हत्या कर दी गयी और उनकी पत्नी को अगुआ कर लिया गया जिनका आज तक पता नही चल पाया नीलकंठ की हत्या की वजह ये थी की उन्होंने आतंकवादी मकबूल बट्ट को मौत की सजा सुनायी थी |
मस्जिदों से लगाये गये नारे :
कश्मीर की मस्जिदो में
नारे लगाये जाते थे “ कश्मीर में रहना होगा ,अल्ला हु अकबर कहना होगा “
कट्टरपंथियों का खौफ इतना था की टीका लाल टिक्कू के बेटे मोहन लाल ने अपील की थी
की उन्हें अपने पिता की अस्थिया हरिद्वार में विसर्जित करने की अनुमति दी जाये ये
अपील कयी अखबारों में छपी थी |
आपको बताते चले की बटवारे
के बाद देश का ये सबसे बड़ा पलायन था और दोनों पलायन की जिम्मेदार सिर्फ कांग्रेस
सरकार थी |
Highlights :
- 1986 में फारुख अब्दुल्ला के साले गुलाम मोहम्मद ने सत्ता छीनी खुद मुख्यमंत्री बन गये |
- गुलाम मोहम्मद ने ऐलान किया की प्राचीन मंदिर तोड़ कर मस्जिद का निर्माण किया जायेगा |
- गुलाम मोहम्मद के ऐलान के बाद कश्मीरी पंडितों ने विरोध किया विरोध के बाद दक्षिण कश्मीर और सोपोर में दंगे भड़के |
- दंगो में कयी कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतरा गया और उनको पलायन के लिए मजबूर किया गया |
- 12 मार्च 1986 को उस वक्त के राज्यपाल जगमोहन मल्होत्रा ने गुलाम मोहम्मद की सरकार को बर्खास्त कर दिया |