crime story dehli-रंगा-बिल्ला की कहानी – 1978 में हुए दोहरे हत्याकांड ने जिसने देश के प्रधानमंत्री को संकट में डाला |
आज हम बात करेगे एक ऐसे दोहरे हत्या कांड की जिसने पुरे देश को दहला दिया था इस हत्या कांड ने 1978 को मोराजी देसाई की सरकार को हिला के रख दिया
26 अगस्त 1978
26 अगस्त 1978 को दिल्ली के नेवी अधिकारी के मदन चोपड़ा की बेटा और बेटी संजय और बेटी गीता
आल इंडिया रेडियो को निकलते है क्योकि उनका ऑन एयर प्रोग्राम था लेकिन दोनों बच्चे
आल इंडिया रेडियो पहुचते ही नही है उनका बीच रास्ते से अपहरण हो जाता है ,मामले
में पुलिस को एक राहगीर सूचना देता है की
फियट कार में एक लड़की मदद के लिए चिल्ला रही थी
| गीता और संजय के माता पिता बच्चो की आवाज़ सुनने के लिए रेडियो के पास
बैठे थे लेकिन पूरा प्रोग्राम ख़तम हो जाता है उनको बच्चो की आवाज़ सुनायी नहीं देती
है वो रेडियो स्टेशन से संपर्क करते है लेकिन उनको वहा से बताया जाता है की बच्चे
वहा आये ही नही नेवी अधिकारी पुलिस स्टेशन में संपर्क करते है पुलिस जानकारी देती
है की उनके पास सुचना है मामला चूकी नेवी अधिकारी का था तो पुलिस तुरंत एक्शन में
आती है पहले जिस शख्स ने सुचना दी थी उसने कार का नंबर MRK -8930 बताया था पुलिस कई टीमों का गठन करती है और
चारो ओर नाके बंदी कर दी जाती है पुलिस
देहली के निकट पड़ने वाले राज्यों से मद्दत
लेती है पंजाब ,राजस्थान ,उत्तर प्रदेश की पूरी टीमे रात भर लगी रही लेकीन कोई
सफलता हाथ नही लगी
19 अगस्त 1978 :
29 अगस्त 1978 को एक चरवाहे को लाश दिखाई देती है वो पुलिस को सुचना देता है ,पुलिस मौके –ए
–वारदात पर पहुचती है लाश रोड़ से करीब 20 फिट की दूरी पे पड़ी होगी पुलिस आस पास
खोजबीन करने लगती है संजय की भी लाश मिल जाती है यहाँ पे आपको पता दे चरवाहे को जो
पहले लाश दिखती है वो गीता की होती है, पुलिस अधिकारी शिनाख्त के लिए मदन चोपड़ा को
बुलाते है नवी अधिकारी शिनाख्त करने है की ये उन्ही के बेटा बेटी है पुलिस इस
धोहरे हत्याकांड की हर एंगल से जाँच कर रही थी क्योकि मामला एक नेवी अधिकारी का था
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट :
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट की से रिपोर्ट से खुलाशा हुआ की दोनों की हत्या 26
अगस्त की रात 10 बजे ही कर दी गयी थी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में ये खुलाशा
नही हो पाया की गीता के साथ रेप हुआ था पोस्टमार्टम करने वाले डोक्टर ये बताने की
हालत में नही थे गीता का रेप हुआ है या नही डॉक्टरो का तर्क था की लाश सड़ने लगी थी
इसी लिए रेप की पुष्टि नही हुई|
पूरे देश का गुस्सा सातवे
आसमान पर था लोग जगह जगह सडकों पे उतर रहे थे पुलिस के ऊपर बहुत दवाव था पुलिस
देहली के आस पास पड़ने वाले राज्यों के संपर्क में थी आखिरकर 31 अगस्त को फियट कार
मिल गयी पुलिस को फियट कार तो मिल गयी बाद
में कार के मालिक अशोक शर्मा का पता चल गया लेकिन उनकी कार दिल्ली के अशोक होटल के सामने से चोरी हो गयी थी पुलिस हत्या के कारणों का प्रयाश कर रही थी तभी
इसी बीच फिंगर प्रिंट और फॉरेंसिक सबूत रंग्गा बिल्ला की तरफ इसारा कर रहे ,पुलिस
ने बिना देरी किये हर राज्य में फोटो लगवा दिए |
आईये जानते है की ये खतरनाक अपराधी थे कौन ?
रंगा का असली नाम कुलजीत सिंह था , बिल्ला का का असली
नाम सतबीर सिंह था रंगा मुंबई में ड्राईवर
था चुकी दोनों टैक्सी ड्राईवर थे तो दोनों में दोस्ती हो गयी रंगा को बिल्ला के
बारे में पहले से ही पता था की ये कई हत्याए कर चूका पुलिस ने दोनों की फोटो हर
जगह लगा दी थी यहाँ तक की पुलिस वाले सादी
वर्दी में घूम रहे थे ,रंगा बहुत शातिर था
वो जान गया था की जरा सी भी चूक हुयी तो उसको सिर्फ मौत की सजा मिलेगी लेकिन वो
जिस चालाकी में था उसकी सारी चालाकी धरी रह गयी |
आर्मी की बोगी में चड़ने से पकडे गये दोनों :
रंगा बिल्ला धोखें से
आर्मी बोगी में चढ़ गये चुकी आर्मी की बोगी रिजर्व होती है तो उसमे कोई आम आदमी नही
चढ़ सकता है आर्मी के जवानों ने पूछतांज कर
दी इसी बीच एक जवान ने दोनों को पहचान लिया आर्मी के जवान बैग से पेपर निकला और फोटो देखते ही दोनों को पकड़ लिया पुलिस
को सुचना देने के बाद पुलिस के हवाले कर दिया |
31 जनवरी 1982 की रंगा बिल्ला को फांशी
पे लटका दिया गया रंगा बिल्ला ने जो अपने बयान में बताया की उसने बच्चो का अपहरण
फिरौती के लिया किया था लेकिन उन्हें जब
बाद में पता चला के ये एक बड़े अधिकारी के बच्चे है तो उन्होंने उनकी हत्या कर दी |
फांशी के बाद भी 2 घंटे तक जिन्दा रहा रंगा :
जेल के डॉक्टरो ने जब
रंगा की नाडी देखी तो रंगा की सांसे चल
रही थी जेल प्रशासन ने एक व्यक्ति की नीचे भेज कर उसके पैर खीचने को कहा रंगा के
जब पैर खीचे गये तब उसकी मृतु हुयी |