आज हम बात करेंगे शाह बानों केस की जिसने 80 के दसक में कांग्रेस की खूब फजीहत कर वायी जब भी कांग्रेस महिला सशक्तिकरण का मुद्दा सदन में उठाती है तो कई पार्टिया कांग्रेस को शाह बानों का केस याद दिलाने लगती है बीजेपी की सरकार तो शाह बानों के मुद्दे को बहुत ही मुखर तरीके से उठाती है यहां हम सबको आज शाह बानों का केस जानना चाहिए और ये भी जानना चाहिए की उस वक्त की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम तुस्टीकरण करने के लिए कैसे सुप्रीम कोर्ट के कानून को पलट दिया
Shah Bano : कौन थी शाह बानों
शाह बानों की शादी मध्य
प्रदेश के इंदौर जिले में रहने वाले जाने माने वकील मोहम्मद अली खान से हुयी थी मोहम्मद अली खान का उस वक्त
राजनीति में भी बड़ा रसूख था शादी के बाद शाह बानों ने पांच बच्चों को जन्म दिया
शादी के कुछ सालों बाद शाह बानों और मोहम्मद अली खान के रिश्तों तल्खी आनी शुरू हो
गयी हर रोज लडाई झगड़े होने लगे विवाद उस वक्त और गहरा गया जब अली खान ने अपने से
कम उम्र की लड़की से शादी कर ली कुछ सालों तक दोनों पत्नियों के साथ रहने के बाद
अहमद खान ने शाह बानों को 1978 को तलाक दे दिया उस वक्त शाह बानों की उम्र लगभग 63
साल रही होगी |
शाह बानों ने इंदौर की स्थानीय अदालत में ढाला मुकदमा :
शाह बानों ने गुजारा भत्ते की मांग करते हुए इंदौर की स्थानीय अदालत
में मुकदमा ढाल दिया शाह बानों ने भारतीय एक्ट 125 के तहत कोर्ट से 500 रुपैये गुजारे
भत्ते की मांग की लेकिन अली खान ने अपने बचाव में कहा की उन्होंने मुस्लिम पर्सनल
लॉ के तहत तलाक दिया है और अली खान ने 3000 रुपैये कोर्ट में जमा करते हुए ये कहा
की वो मेहर की रकम लौटा रहे है अगस्त 1979 को निचली अदालत ने शाह बानों को 25
रुपैये महीने देने का आदेश दिया मोहम्मद अली खान की उस वक्त की मासिक इनकम लगभग
5000 रुपैये थी 25 रुपैये का गुजारा भत्ता कही से भी न्यायोचित नहीं कहा जा सकता
था |
Shah bano: ने हाईकोर्ट में अपील की
शाहबानों ने गुजारा भत्ता
बढाने के लिए हाईकोर्ट में अपील दायर की मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 25 रुपैये को
बढाकर गुजारा भत्ता की रकम 179 रुपैये कर दिया जिसके बाद मोहम्मद अली खान ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और वहा पर ये
कहा की उन्होंने मेहर की रकम अदा कर दी है इस लिए वो गुजारा भत्ता देने को बाध्य
नहीं है अली खान ने ये भी दलील दी की वो मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुशार पति को तलाक
के बाद वो पत्नी को सिर्फ तीन महीने तक ही गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है |
चुकि शाह बानों के पास
कमाई का कोई साधन नही था और उम्र भी ज्यादा थी तो उन्होंने धारा 125 तहत गुजारा
भत्ता मांगा था शाह बानों की तरफ से डैनियल लतीफ़ पैरवी कर रहे थे उन्होंने मुस्लिम
पर्सनल लॉ पर सवाल उठाते हुए कुरान की दो
आयतों का हवाला दिया इन दो आयतों की दलील पर शाह बानों के वकील ने कहा की तलाकशुदा
महिला की मदद करना फरमान है सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा की 125
क्रिमिनल लॉ की धारा है इस लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ इस धारा से ऊपर नहीं हो सकता है |
शाह बानों केस से मच गया हंगामा :
शाह बानों केस में हंगामा
मच गया कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा की धर्म के आधार पर महिलओं के अधिकार नहीं
छीने जा सकते है कोर्ट सरकार को सुझाव दिया की सामान नागरिक
संहिता बनाने का सुझाव दे
दिया और कहा की ये कानून देश की एकता को मजबूत करेगा कोर्ट के इसी सुझाव से हंगामा
मच गया |
हंगामा मचने की वजह :
कोर्ट की टिप्पणी और
कानून बनाने के सुझाव पर मुस्लिम उलेमाओं उनके धर्म पर हमला लगा और इस कानून पर
फतवा जारी कर के समाज ये अफवाहें फैला दी गयी की ये कानून इस्लाम के खिलाफ है जगह
जगह पर प्रदर्शन होने लगे इस फैसले को बदलने की मांग होने लगी कांग्रेस को कुछ जगह
चुनाव में हार मिली तो राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार सकते में आ गयी |
फरवरी 1986 : राजीव गांधी ने मुस्लिम पर्सनल लॉ को ही माना मुसलमानों की आवाज
मुस्लिम पर्सनल लॉ
बोर्ड के उलेमा राजीव गांधी को ये समझाने
में कामयाब रहे की वही देश के मुसलमानों की आवाज है 1986 में कांग्रेस सरकार ने
सदन में प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स ऑन डाइवोर्स एक्ट पेश किया इस कानून के तहत मुस्लिम
महिलाए 125 एक्ट के तहत गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती थी 5 मई 1986 को संसद में ये
कानून पास भी कर दिया गया इस नये कानून के आ जाने से शाह बानों ने अपना केस वापस
ले लिया लेकिन इस कानून से हिन्दू धर्म के लोगों में आक्रोश भर दिया तब तक बाबरी
मस्जिद का मुद्दा भी बहुत जोरों से चलने लगा और यही से कांग्रेस सरकार का पतन शुरू
हो गया |