Harda Factory Blast: 9 वर्षीय बालक ने जान देकर बचायी अपने पिता की जान

asheesh harda blast case

Harda Factory Blast News :
6 फरवरी को हारदा की एक पटाका फैक्ट्री में ब्लास्ट हुआ था ये ब्लास्ट इतना भयानक था की 12 लोगों की मौत हुयी और 200 से ज्यादा लोग घायल हुये थे इतना तो आप सब ने न्यूज़ में देखा होगा समाचार पत्रों में पढ़ा भी होगा लेकिन इन सबके बीच एक मौत हुयी जिसे शायद मीडिया ने उतना कवर नहीं किया जितना की करना चाहिए था |
Harda Factory Blast Story
इस दुखद कहानी की शुरुआत करते है 9 फरवरी 2014 से मध्य प्रदेश के हारदा जिले में एक माध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले संजय राजपूत के यहां एक बालक का जन्म होता है संजय राजपूत उसका नाम आशीष रखते है संजय राजपूत के तीन बच्चे थे संजय ड्राइविंग करके अपने परिवार का भरण पोषण किया करते थे आशीष जब एक महीने का होगा तभी संजय राजपूत को लकवा मार जाता है और वो चलने फिरने में अशमर्थ हो जाते है |

संजय को आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है इसी वजह से संजय और उनकी पत्नी अपने दूसरे बेटे को अपनी बहन के यहां छोड़ देते है धीरे धीरे जिन्दगी की गाड़ी चलने लगती है आशीष ने जब अपने पिता संजय राजपूत की पहली बार उंगली पकड़ी तो संजय को लगने लगा की आशीष ही आंगे चल कर उनका सहारा बनेगा |

संजय ने घर के पास ही एक छोटी सी पान मसाले की दुकान खोल ली थी आशीष अपने पापा के हमेशा आस पास ही रहता था जैसे ही वो कुछ मागते वो दौड़ के ले आता आशीष ने अपने पापा को व्हील चीर पर ही देखा था इसलिए उसका लगाव बढता जा रहा था वह संजय को व्हील चेयर से रोज दुकान तक ले जाता था और संजय के काम में सहयोग करता फिर शाम को वह अपने पापा को व्हील चेयर पे बैठा के घर वापस ले आता आशीष की मां और बहन सोमेश फायर वर्क्स फैक्ट्री में काम करती थी जो की अवैध रूप से चल रही थी आशीष जैसे जैसे बड़ा हो रहा था वैसे वैसे उसकी समझदारी बढती जा रही थी आशीष अपनी उम्र से पहले ही बड़ा हो गया था जिस उम्र में उसे खेलना कूदना चाहिए था उस उम्र में वो अपने पापा के काम में हाथ बटाने लगा था आशीष अब 9 साल का हो गया था |

6 फरवरी 2024 : Harda Pataka Factory

आशीष अपने पापा संजय राजपूत को हॉस्पिटल दिखाने ले जाता है वापस आते वक्त आशीष संजय को व्हील चेयर पे बैठा के वापस ला रहा था तभी पटाखा फैक्ट्री में जोरदार धमाका होता है धमाका इतना बड़ा था की जिसकी आवाज 50 किलोमीटर दूर तक सुनायी दी और आस पास इलाकों में झटके भी महशूस किये गये |

फिर फैक्ट्री में लगातार कई धमाके हुए फैक्ट्री में उस वक्त 150 से अधिक लोग काम कर रहे थे धमाकों की वजह से कई घरों का मलबा टूट कर गोलियों की तरह इधर उधर उड़ने लगा आशीष ने बिना देर किया व्हील चेयर को तेजी से धक्का देना शुरू किया वह अपने पापा संजय राजपूत को सुरक्षित जगह पर ले जाना चाहता था बड़े बड़े पत्थर हवा में उड़ रहे थे जिसमे से कई पत्थर आशीष के चेहरे और सर में लगे लेकिन उसने बिना अपने दर्द की परवाह किये अपने पापा को सुरक्षित जगह पहुचा दिया जिस वक्त ये धमाका हुआ उस वक्त आशीष  की मां और बहन फैक्ट्री में ही थे वो दोनों किसी तरह फैक्ट्री से बहार निकलने में कामयाब हुए |

आशीष और संजय को हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया आशीष बहुत बुरी तरह से जख्मी था संजय राजपूत की हालत तो ठीक हो गयी लेकिन आशीष की हालत बिगडती चली जा रही थी आशीष को एम्स भोपाल रेफर किया गया  लेकिन 9 फरवरी को अपने 10वें जन्मदिन के दिन आशीष निकल गया उस यात्रा पे जहा से फिर कभी कोई लौट के नहीं आता है इस तरह से एक वीर बालक का निधन हो गया आशीष ने अपने पिता संजय के लिए जो किया वो आने वाले कई वर्षो तक याद रखा जायेगा और ये भी याद रखा जायेगा की एक नन्हे बालक ने अपने अपाहिज पिता का जीवन बचाने के लिए खुद को बलिदान कर दिया |

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