Isha Muder case Kanpur:ईशा मर्डर केस में दस साल बाद आया फैसला

Isha Muder case Kanpur:ईशा मर्डर केस में दस साल बाद आया फैसला

 

Isha Muder case Kanpur:update

उत्तर प्रदेश के जिला कौशांबी का एक थाना लगता है महवा घाट। महवा घाट थाना क्षेत्र में एक राजा का पुल है जो कि यमुना नदी के ऊपर बना हुआ है। 18 मई 2025 की देर रात की यह बात है। एक कार यहां पर आकर रुकती है। कार में उत्तर प्रदेश पुलिस में तैनात एक दरोगा बैठा हुआ था। दरोगा अपनी कार से उतरता है। उतरने के बाद चारों तरफ देखता है। जब देखता है कि सुनसान इलाका है। रात बहुत ज्यादा हो चुकी है। यहां पर कोई नहीं है दूर-दूर तक। तभी वह अपनी कार के खिड़की खोलता है। खिड़की खोलने के बाद एक सर निकालता है। सर होता है एक महिला का और उस महिला के सर को वो उसके बाल पकड़ता है और बाल पकड़ने के बाद उसे पूरी ताकत से घुमाता है और घुमाने के बाद नदी में फेंक देता है। उसके मकसद था कि यह नदी में बह जाएगा यहां से दूर चला जाएगा। अब उसके बाद फिर दोबारा से खिड़की खोलता है।

खिड़की खोलने के बाद नग्न अवस्था में एक लड़की की लाश थी उसमें। उस लड़की की लाश को बाहर निकलता है और बाहर निकालने के बाद अब उस लाश को फेंकने का नंबर था। क्योंकि सर तो हल्का था इसलिए उसने पहले सर को फेंक दिया और बाकी जो हिस्सा बचा हुआ था वो भारी था। आखिरकार उसमें इतनी ताकत नहीं थी कि उसे

उठाकर यूं ही उसे फेंक देता। उसने कोशिश की उसको उठाया। उठाने के बाद। अब जैसे वह फेंकने की कोशिश कर रहा था इसी बीच में एक कार और निकल के गुजरती है। जैसे ही कार गुजरती है उस कार की जो लाइट थी दरोगा पर उस लाश पर पड़ जाती है। और जैसे ही उस लाश पैर और दरोगा पर जो लाइट पड़ती है तब दरोगा घबरा जाता है। डर जाता है। सोचने पर मजबूर हो जाता है कि उसे लगता है कि जो कार में बैठे हुए थे जरूर उन्होंने देखा होगा क्योंकि चोर के जो पांव होते हैं वो बहुत कमजोर होते हैं। वो डर जाता है। उस लाश को वहीं छोड़ देता है। छोड़ने के बाद अपनी कार में बैठता है और वहां से भागना शुरू कर देता है। बार-बार पीछे देख रहा था। कभी साइड के मिरर में देख रहा है, कभी इस साइड के मिरर में देख रहा है, कभी वो सामने वाले मिरर में देख रहा है। देख के ये देखने की कोशिश कर रहा था।

कहीं ऐसा तो नहीं है वो कार उनका पीछा तो नहीं कर रही है। वो भागता रहता है, भागता रहता है लेकिन पकड़ा जाता है। जब पकड़ा जाता है तो इस घटना को लगभग 10 साल बीत जाते हैं और तारीख आती है 24 सितंबर 2025 फिर   अदालत अदालत अपना फैसला सुनाती है और अदालत यह कहती है कि यह कितना ही भाग ले इसको तब तक सलाखों के पीछे रखो जब तक कि इसके प्राण ना निकल जाए।

यानी कि ये मरकर ही अब जेल से बाहर निकल सकता है। इससे पहले नहीं। आज की इस कहानी के माध्यम से यही जानने की, यही समझने की कोशिश करते हैं कि वो दरोगा कौन था। साथ ही वो लड़की कौन थी जिसकी लाश को फेंका जा रहा था। लाश का बाकी हिस्सा तो मिल जाता है। लेकिन सर आज तक भी नहीं मिल पाया है। भले ही जाएं 10 साल हो गए हैं। आज की जो सच्ची घटना मैं आपको बताने जा रहा हूं, यह सच्ची घटना है उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर का एक थाना लगता है नजीराबाद और नजीराबाद थाना क्षेत्र में एक चौकी लगती है। गुमटी नंबर पांच ये चौकी का नाम है।

दरअसल यहां पर एक मशहूर होटल है और मशहूर होटल में काम करने वाली एक ईशा(Isha) नाम की लड़की होती है जो यहां पर रिसेप्शनिस्ट का काम करती है। वो जैसे ही अपने घर की तरफ जा रही है। थोड़ा अंधेरा सा हो चुका था। इसका जो लड़की का घर लगता है वह कानपुर का ही एक थाना लगता है। काकादेव और काकादेव(Kakadev) थाना क्षेत्र का नवीन नगर है और नवीन नगर में एल ब्लॉक में इस लड़की का घर होता है। जैसे ही लड़की चौकी गुमटी नंबर पांच की तरफ से गुजर रही थी उस उसके सर्किल उसके एरिया से गुजर रही थी। इस लड़की के पास से दो लड़के आते हैं और लड़के आने के बाद इसका पर्स छीनते हैं और वो पूरी ताकत से भाग लेते हैं। हालांकि इस लड़की ने खूब चीखने चिल्लाने की कोशिश की लेकिन उसकी चीखों की आवाज बाकी लोगों तक नहीं पहुंची क्योंकि बाकी लोग निकल के घरों में से आए नहीं और चोर आसानी से भाग जाते हैं।

लड़की परेशान हो जाती है। रोने लगती है। अब रोते-रोते वो सोचती है कि करूं तो क्या करूं कि पर्स के अंदर जरूरी कागजात भी थे। पर्स के अंदर ही उसका मोबाइल भी था और पर्स के अंदर पैसे भी थे।

घर कैसे जाएगी? यही सोच रही थी। लेकिन तभी उस लड़की के दिमाग में आता है कि एक काम करते हैं नजदीकी पुलिस स्टेशन चलते हैं। आसपास के लोगों ने कहा मैडम आप बिल्कुल परेशान मत हो। यह गुमटी नंबर फाइव चौकी है बिल्कुल पास में ही है। आपको वहां जाना चाहिए और वहां जाने के बाद अपनी शिकायत दर्ज करानी चाहिए ताकि जो भी इसमें चोर होंगे वो पकड़े जा सकें। लड़की की बात समझ में आ जाती है। ईशा(Isha) यहां से नजदीकी पुलिस स्टेशन पहुंच जाती है। वहां जाने के बाद दरोगा साहब से मुलाकात करती है।

जो चौकी के इंचार्ज होते हैं। नाम उनका ज्ञानेंद्र सिंह(Gyanendra Singh)होता है। दरोगा जी से बात करती है। कहती है कि साहब दो चोर आते हैं। मेरा पर्स छीना और यहां से चले गए। उसमें जोरी कागजात रखे हैं। मेरा मोबाइल रखा हुआ है और कुछ पैसे थे। आप इस देख लीजिए। अब उस लड़की ने जैसे ही बात कही है। लड़की ने ये बात कहने के बाद दरोगा जी ने पूछा कि आपका नाम क्या है? लड़की ने कहा मेरा नाम ईशा सचान (Isha Sachan)है और दरअसल उसके पिताजी इंजीनियर्स थे तो साथ ही उसने पूरे अपने घर की जानकारी दी उन्होंने कहा बिल्कुल परेशान होने की जरूरत नहीं है। मुझ पर भरोसा रखो मैं तुम्हारा पर्स हर हाल में किसी भी कीमत पर ढूंढ के लेके आऊंगा। दरोगा ने जब उस लड़की को तसल्ली दी और तसल्ली ना केवल दी बल्कि उस लड़की को घर तक भी छुड़वाया कि आप बिल्कुल परेशान मत होइए और फिर आकर मुझसे मिलना मैं अपनी तरफ से जांच करता हूं।

लड़की को थोड़ी तसल्ली हो जाती है और तसल्ली होने के बाद दरोगा जी ने अपनी पूरी जान पूरी ताकत लगा दी। उन दोनों चोरों को ढूंढने के लिए आखिरकार वो दोनों चोर हैं कौन? हालांकि पुलिस ने उन्हें एफआईआर दर्ज नहीं की थी और दरोगा ने यही कहा कि आप एफआईआर दर्ज मत कराइए। लेकिन मैं तुम्हारे उन चोरों को जरूर पकड़ दूंगा। आखिरकार दरोगा जी लग गए अपने काम में।

एफआईआर(FIR)दर्ज कर ली जाती है और एकदम जादू से प्रकट हो जाते हैं दोनों चोर। एक चोर का नाम होता है ज्ञान प्रकाश और दूसरे चोर का नाम होता है छोटू यादव। दरअसल इनके पास ही मोबाइल पाया गया था और यही असली चोर भी थे। अब यह बात जब लड़की की सुनती है तो लड़की बड़ी खुश होती है। सारा सामान उसको मिल जाता है। वो इतना खुश होती है कि दरोगा जी को थैंक यू बोलती है। दरोगा जी इसलिए भी खुश थे क्योंकि दोनों की जो कम्युनिटी थी, दोनों की कास्ट जो थी वो एक ही थी।

दरोगा जी भी कहीं ना कहीं उन लड़की को देखकर खुश हो जाते हैं और बीच-बीच में लड़की से लगातार संपर्क भी कर रहे थे। कभी उसके होटल भी चले जाया करते जहां वो रिसेप्शन का काम कर रही है और जब दोस्ती थोड़ी अच्छी सी हो जाती है तो दरोगा साहब उस लड़की के घर भी चले जाते थे।

दोनों की दोस्ती थोड़ी गहरी हो जाती है। दोस्ती गहरी हो जाती है। लड़की ने अपने परिवार वालों से की और दरोगा जी ने अपने घर वालों से बात की। आखिरकार यहां से दोस्ती, दोस्ती प्यार प्यार के बाद ये फैसला करते हैं कि क्यों ना हम दोनों शादी कर लें तो कैसा रहेगा? इसलिए शादी की बात आती है।

घर परिवारवालों से बातचीत होती है और बातचीत होने के बाद आखिरकार 10 मार्च 2013  को दोनों की शादी होती है। हिंदू रीति-रिवाज के हिसाब से धूमधाम से शादी होती है। लड़की के परिवार के सभी लोग शामिल होते हैं। लड़के के परिवार के लोग भी सब शामिल होते हैं। और एक साल कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता क्योंकि खुशियों का यह दौर था।

एक साल जैसे होता है एक साल के बाद एक बेटी पैदा होती है। उस बेटी का नाम रखा जाता है सनाया।सब कुछ जिंदगी में ठीक-ठाक चल रहा था। बेहतरीन चल रहा था। अचानक ही इस लड़की के पास एक खबर पहुंचती है। खबर कुछ इस तरह से थी कि क्या ईशा आप बात कर रही हैं? वो कहती है हां मैं ईशा बात कर रही हूं। वो कहता  है कि देखो ईशा अगर जो भी है तुम अपने स्तर से पता कर लेना। लेकिन एक जानकारी मैं आपको देना चाहता हूं। यह देना चाहती हूं। दरोगा जी के नाम ज्ञानेंद्र सिंह है जो कि मूल रूप से चित्रकूट के एक गांव लगता है छिवीलाहा वहां के रहने वाले हैं और मैंने इनके बारे में पूरी तरह से पता कर लिया है। दरअसल यह शादीशुदा हैं और इनको दो बेटे बच्चे भी हैं और इनकी जो पत्नी है उसका नाम है वो नीलम नाम है जो कि मध्य प्रदेश के सतना की रहने वाली है।

जब इस तरह की इंफॉर्मेशन मिली तो शुरुआत में तो ऐसा लगा कि झूठ बोला जा रहा है। लेकिन ईशा सचान ने अपनी तरफ से पूरी जानकारी जुटाने की कोशिश की और जब पता लगाया तो बाकी सचमुच यह पता चलता है कि दरोगा साहब तो पहले से ही शादीशुदा हैं। इनको दो बच्चे भी हैं और यहां पर उनकी एक बेटी भी पैदा हो गई है। अब लड़की क्या करे क्या ना करे ये समझ नहीं आ रहा था उसको। तभी बेटी उस लड़की ने इतना गुस्सा करती है। अब गुस्सा करने का मतलब था कि दोनों में लड़ाई झगड़ा हो जाता है।

हालांकि दरोगा साहब ने समझाने की तमाम कोशिशें की। लेकिन जो कोशिशें थी वो नाकामयाब हो जाती हैं। इसलिए क्योंकि उन्होंने धोखा देकर ये शादी जो की थी। अब बेटी का जो नाम था सनाया उन्होंने कहा कि इसका जन्म प्रमाण पत्र बनवा दीजिए। जब बात जन्म प्रमाण पत्र बनवाने की आती है तब उस लड़की के पिता का नाम तो ज्ञानेंद्र सिंह ही लिखा जाता है। लेकिन जब बात मां के नाम की आती है तो मां का नाम ईशा सचा ना लिखकर नीलम लिखवाने की कोशिश की जा रही थी और यही बात ईशा को बहुत ज्यादा परेशान करने लगती है और इस बात पर इनमें दोनों में और ज्यादा कहासनी होती है।

अब झगड़े की कोई वजह नहीं थी। यानी कि बेवजह भी झगड़े होने शुरू हो जाते हैं और इतने झगड़े शुरू होते हैं कि दोनों में कहासनी किसी बात ना किसी बात को लेकर रोज का रोज ये सब चल रहा था और ऐसे चलते-चलते रोज-रोज झगड़ा रोज-रोज मारपीट और मारपीट अब ये दरोगा अपनी पत्नी के साथ कुछ ज्यादा भी करने लगता है। अप्रैल 2015 की बात है। ईशा नाराज होकर अपने मायके चले आती है। अपनी मां को पूरी कहानी बताती है कि उसके साथ ऐसा छल क्या गया है। उसने प्यार का नाटक किया। उसे प्रेम जाल में फंसाया। प्रेम जाल में फंसाने के बाद अब कहानी यहां तक आ गई है।

जब बेटी अपनी मां के घर पहुंच जाती है तो घर वालों को बड़ा आश्चर्य हो रहा था। अब करें तो क्या करें? क्योंकि कहानी बहुत ज्यादा आगे बढ़ चुकी थी। वो  खुद परेशान थे। आखिरकार लड़की अपने घर में थी। अब अगला महीना यानी कि मार्च अप्रैल मई का महीना आ जाता है और यह तारीख रही होगी लगभग 17 मई 2015 की। आखिरकार घर का एक रिश्तेदार एक जिम्मेदार आदमी ने इस लड़की को ईशा को और साथ ही ज्ञानेंद्र सिंह जो दरोगा होता है उन दोनों का आसपास बिठाया आसपास बिठाने के बाद उन्हें पूरा तरीके से समझाने की कोशिश की और कहा कि जिंदगी को अब इसे निभाने की कोशिश करना है। जब तक तुम्हें यह नहीं पता था कि शादीशुदा नहीं है तब तक तो तुम्हारी जिंदगी ठीक चल रही थी और इन्होंने इस रिश्ते को निभाने की तमाम कोशिशें भी की।

जब यह बात कही जाती है तो आखिरकार उस लड़की के दिमाग में बात आ जाती है और जैसे ही लड़की की बात दिमाग में आती है दरोगा जी भी खुश हो जाते हैं और यह कहा जाता है कि लड़की को अपने लेके आ जाना लेकिन ज्यादा परेशान मत करना मारपीट मत करना दरोगा की भी बात समझ में आ जाती है और 18 मई 2025 की दोपहर लगभग 3:00 बजे के आसपास वो घर जाते हैं यानी कि सासू मां विनीता से बात करते हैं और सासू मां से कहते हैं कि सासू मां मैं अपनी पत्नी को शिफ्ट कार है उनकी अपनी खुद की लड़की की यूपी 78 सीp 5281 वो इसे मैं लेके जाना चाहता हूं और जो मुक्ता देवी मंदिर है मैं मां के दर्शन करना चाहता हूं और मैं अपनी पत्नी को भी साथ लेकर जा रहा हूं क्योंकि पति पत्नी का मामला था इसलिए किसी को क्या ऐतराज हो सकता है वो अपनी पत्नी को लेकर सीधा मुक्ता देवी मंदिर में चले जाते हैं दर्शन करने के लिए और रात हो जाती है अब रात लगभग 8:00 बजे के आसपास का वक्त था सास यानी कि विनीता ने अपनी बेटी को फोन किया और ईशा से बातचीत करने की कोशिश की तो उसका नंबर स्विच ऑफ आ रहा था।

अब जब उसका मोबाइल स्विच ऑफ था, उन्होंने सोचा कि हो सकता है किसी वजह से बैटरीवैटरी खत्म हो गई हो। तो उन्होंने अपने दामाद यानी कि दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को फोन बुलाया। अब जब ज्ञानेंद्र सिंह को फोन लगाया तो उनका भी नंबर स्विच ऑफ आ रहा था। अब यहां पर विनीता को ऐसा लगने लगता है कि कुछ ना कुछ गड़बड़ है। मेरी बेटी के साथ कुछ गलत जरूर हुआ है। वो दौड़ते हुए अपने बेटे को लेकर काका देव थाने पहुंच जाती हैं और जाकर कहती हैं कि साहब मेरी बेटी दामाद के साथ दोपहर 3:00 बजे निकली थी। रात 8:00 बजे मैंने फोन करने की कोशिश की। लेकिन उनका नंबर स्विच ऑफ आ रहा है। आप मदद कर दीजिए।

आप इसमें देख लीजिए। पुलिस वालों ने पूरी बात सुनी। बात सुनने के बाद कहा कि मियां और बीवी का मामला है। स्विच ऑफ हो गया तो तुम इतना परेशान क्यों हो रही हो? जाओ घर जाओ आराम से जाकर सोना। मां को इस तरह से समझाकर जब उसने ज्यादा कुछ कहने की कोशिश की तो डांट डबट के उन्होंने भगा दिया कि जाओ यहां से काम करो। जैसा पुलिस का अमूमन कई बार रवैया हो जाता है। तो यहां भी रवैया कुछ ज्यादा अच्छा नहीं था। इसके बाद वो महिला चली जाती है। परेशान होती है और रात भर अपनी बेटी का इंतजार कर रही थी कि कब उसका जो फोन था वो ऑन होगा और कब अपनी बेटी से बात करेगी। रात भर में जितनी बार भी मां की आंख खुलती है अपनी बेटी से बात करने के लिए तमाम बार उसने मोबाइल फोन लगाया लेकिन वो कामयाबी नहीं मिल रही थी। अगला दिन निकलता है। अगला दिन निकलने के बाद क्योंकि उसे पता था कि काकादेव थाने वाले तो उसकी बात सुनने वाले हैं नहीं।

वो बड़े अधिकारी यानी कि एसपी के पास जाती है और जाकर कहती है कि साहब देखो मेरी बेटी इस तरह से गायब हो गई है। उसका नंबर स्विच ऑफ आ रहा है। अगर मैं अपने दामाद को फोन करती हूं तो उनका भी नंबर स्विच ऑफ आ रहा है। मेरी बेटी के साथ कुछ ना कुछ गड़बड़ हुई है। आप देख लीजिए। अब ये एसपी ने बात सुनी। एसपी ने 19 मई 2015 को आदेश कर दिया। आखिरकार इसके बावजूद भी रात 9:45 के आसपास काका देव थाने के अंदर एफआईआर दर्ज कर ली जाती है।

लेकिन पुलिस उतनी शिद्दत उतनी ईमानदारी से उस लड़की को यानी कि ईशा को ढूंढने की कोशिश नहीं कर रही थी और ना ही उस दरोगा को ढूंढने की कोशिश कर रही थी। आखिरकार घरवाले भी अपनी तरफ से तमाम कोशिशें कर रहे थे। इधर से उधर बात करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन इसी बीच में एक फोन आता है कि उसने भागकर किसी से शादी कर ली और वो वहां रहना नहीं चाहती। इसलिए आप परेशान ना हो बिल्कुल भी। इस तरह की कहानी रची गई। अब कहीं ना कहीं घर वालों को भी थोड़ी टेंशन हो रही थी, परेशानी हो रही थी। इसी बीच में 21 मई 2015 की यह बात है। लंदन में बैठे एक व्यक्ति जिनका नाम मनोज सिंह होता है। मनोज सिंह की आदत थी कि अपने यहां के इलाके के अखबारों को देखना यानी खासकर वो अमर उजाला अखबार को देख रहे थे और अमर उजाला की इंटरनेट पर खबर पढ़ रहे थे। और खबर पढ़ते-पढ़ते इसी बीच में एक खबर उनके सामने टकरा जाती है। खबर में कुछ देखते हैं कि एक जिला कौशांबी है जो यहां से यानी कि इस घटना स्थल से 167 कि.मी. दूर है। दरअसल वहां पर एक लाश मिली है। लाश जो मिली है उसकी गर्दन यानी कि सर तो है नहीं बाकी पूरा हिस्सा है। नग्न हालत में है। और उसकी खास बात यह है कि उसके एक कंधे पर टैटू बना हुआ है और साथ ही हाथ में घड़ी है।

जब घड़ी को ज़ूम करके बार-बार उन्होंने अपने उसमें लैपटॉप में देखने की कोशिश की, तो पता चलता है कि यह घड़ी तो उन्होंने अपनी साली को गिफ्ट करी थी। यानी कि जो व्यक्ति लंदन में बैठा हुआ देख रहा है। दरअसल वो ईशा का सगा जीजा होता है। उन्होंने देखा कि यह हो ना हो उनकी ही साली है। तभी वो अपनी सास विनीता को मैसेज करते हैं, फोन करते हैं, बातचीत करते हैं और कहते हैं कि तुम्हें यहां से लगभग 167 कि.मी. दूर कौशांबी जाना चाहिए और कौशांबी में जाने जाकर यह पता करना चाहिए कि यह महवा घाट थाना क्षेत्र में जो राजापुर पुल है उसके पास में जो लाश मिली है वो लाश आखिरकार किसकी है।

अब यहां से घर पे घरवाले यानी कि जो विनीता है उसका बेटा और बाकी परिवार के कुछ लोग जाते हैं और कौशांबी जिले में जाने के बाद पुलिस वालों से बातचीत करते हैं। उधर पुलिस वालों ने एफआईआर दर्ज कर ली थी और बाकी जो हिस्सा था यानी कि सर था उसे ढूंढने की तमाम कोशिशें कर रहे थे लेकिन मिल नहीं पा रहा था। वहां पर सूचना मिली थी 19 मई 2015 की सुबह लगभग 5:30 के आसपास एक राहगीर को सड़क के किनारे एक लाश मिलती है नग्न अवस्था में। वो बताता है कि साहब देखो यह जो थाना है महवा घाट वहां से लगभग 100 मीटर की दूरी पर है। उसने जाकर सूचना दी मोटरसाइकिल वाले ने कहा कि साहब इस तरह से लाश पड़ी हुई है। पुलिस ने लाश को कब्जे में लिया और बाकी के उसके हिस्से को तलाशने की कोशिश की लेकिन पुलिस को कुछ नहीं मिल रहा था। पुलिस को मिला था तो उसके कंधे पर एक टैटू मिला था। हाथ में एक घड़ी मिली थी। हाथ में एक पट्टी बंधी हुई थी और पट्टी होने के साथ-साथ उसके शरीर पर कई अलग-अलग हिस्सों में कुछ गहने भी उसने पहने हुए थे जो सुरक्षित थे। यानी कि इसे साफ पता चल रहा था कि लूटपाट के नहीं बल्कि या तो कोई बहुत ज्यादा दुश्मनी बांधने वाला है। उसने इस बात की हत्या की है। लेकिन कौन है? कौन नहीं है, लड़की कौन है? इसकी शिनाख्त करने की कोशिश कर रहे थे। इसी बीच में विनीता 167 कि.मी. दूर से चलकर थाने पहुंच जाती है। जाकर बातचीत करती है। कहां कि मोर्चरी के अंदर लाश रखी हुई है।

आपको देखना चाहिए। घड़ी से पहचान कर ली जाती है। मेरी बेटी की, कंधे पर बने टैटू से पहचान कर ली जाती है कि बेटी की है। गहनों से पहचान कर ली जाती है। और साथ ही हाथ में जो उसके पट्टी बंधी हुई थी, जो चोट लगी हुई थी, उससे पहचान कर ली जाती है। अब आखिरकार पुलिस के पास जाया जाता है। पुलिस को पूरी कहानी बताई जाती है कि मेरे दामाद की ही इसमें कुछ ना कुछ हरकत है। जो दरोगा है, उस वक्त में उसकी तैनाती थी। बताया जाता है प्रतापगढ़ में और प्रतापगढ़ में तैनाती होने के बाद आखिरकार पुलिस ने उसको ढूंढने की कोशिश करना शुरू कर दिया। लेकिन पुलिस के दरोगा हाथ ही नहीं लग रहा था।

चुपके से दरोगा ने किसी वकील से संपर्क किया और वकील से संपर्क करने के बाद 8 जून 2015 को उसने कहा कि मैं कोर्ट में सरेंडर करना चाहता हूं। जैसे ही यह बात और वकीलों को पता चलती है दूसरे अन्य वकीलों में बात फैल जाती है कि एक दरोगा है जिसकी पोस्टिंग वहां है। कानपुर में रहने वाली एक लड़की से प्यार का नाटक किया। उसे जाल में फंसाया शादी की और पहले से ही शादीशुदा होता है। यह कहानी पूरे कानपुर के अलग-अलग इलाकों में फैल जाती है। और बहुत तेजी के साथ यह मामला वायरल भी हो रहा था।

उस वक्त अफवाहों में प्रकाशित भी हो रहा था, छप रहा था और वकीलों ने उस दरोगा को पकड़ा और पकड़ने के बाद जब उसको पीटना शुरू किया है तो इतना पीटा कि उसके तन पर सिर्फ अंडरवियर बचा था। बाकी कोई हिस्सा उसका जो था वो सही नहीं था। यानी कि पिटाई उसकी खूब होती है। और जो पुलिस वाले साथ में आए थे उनको भी काफी उनकी पिटाई हो जाती है। जो वकील पीट रहे थे तो वो देखते क्या कि कौन असली आरोपी है या कौन बचाने वाला है।

उसने पीटना शुरू कर देते हैं। तभी उन पुलिस वालों ने उसके हाथ पकड़े और पकड़ने के बाद भागते चले जाते हैं। डीएम की जो ऑफिस होता है उसके ठीक सामने गाड़ी खड़ी हुई थी। गाड़ी खड़े होने के बाद उन्होंने कहा कि आप इसमें गाड़ी में बैठ जाओ। नहीं तो ये वकील मार मार के हवाई जहाज बना देंगे। कुछ इस तरह की बातें थी। उसके बाद फिर दरोगा जी को लेकर वहां से जाते हैं और मामला फिर ये अदालत में पहुंच जाता है। इसकी जांच पड़ताल की जाती है और जांच पड़ताल करने के बाद यह पता चलता है कि दरअसल दरोगा अपनी पत्नी को लेकर इतना परेशान हो चुका था कि रोज-रोज़ घर में क्लेश होने लगा था और जब दूसरी शादी के बारे में उसे पता चल गया था इस बात को लेकर वो परेशान था। उसने प्लानिंग कर लिया कि इसको किसी भी कीमत में छोड़ना नहीं है।

अपनी पत्नी को धोखे से मंदिर जाने के बहाने उसे ले आता है और ले जाने के बाद उसी रात उसका तार से गला घोटकर हत्या कर देता है और सर्जिकल ब्लेड की मदद से उसके गले को तब तक काटने की कोशिश करता है जब तक यह सर धड़ से बिल्कुल अलग नहीं हो जाता। यहां से लगभग 167 कि.मी. दूर वो उसे लेके जाता है और वहां

 

ले जाने के बाद जिला कौशांबी के एक महिवा घाट में एक राजापुर पुल होता है। वहां पर जो यमुना नदी होती है यमुना नदी में अच्छा खासा पानी भी था। उसने मौका पाते ही उसे उसमें फेंक देता है और फेंकने के बाद धड़ को फेंकने की कोशिश कर रहा था। वो बताता है कि एक कार की लाइट पड़ती उसे ऐसा लगा कि शायद ये कार वाले ने उसको देख लिया है लेकिन कार वाले ने उसको देखा नहीं था। देखता तो वो पुलिस को हाथों हाथ फोन कर देता। अगले दिन सुबह को कोई मोटरसाइकिल वाला जो राहगीर था वो फोन नहीं करता। पुलिस ने इस मामले में पूरी चार्जशीट

लगाती है। चार्जशीट लगाने के बाद अब यह व्यक्ति तो यानी कि दरोगा तो पकड़ा गया था। उसे जेल भेजा जाता है और इस मामले की लगातार अदालत में सुनवाई पर सुनवाई हो रही और दरोगा को पूरा भरोसा था, यकीन था क्योंकि पुलिस ने यह बताया जाता है कि उसकी इतनी मदद करी थी कि यह केस ज्यादा दिन तक टिक ही नहीं पाएगा। इसमें और कई लोगों को आरोपी बनाया गया था लेकिन उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिल पाते हैं। पांच ऐसे आरोपी थे। इसलिए अदालत ने उनको सबूतों के अभाव में छोड़ दिया। लेकिन ज्ञानेंद्र सिंह ने अपनी कोशिश की। खुद अदालत में वकील के भेष में भी आते थे और

लड़ने की कोशिश की। अपने पूरे-पूरे कई कई पन्नों की जो चार्जशीट लगी हुई थी उसमें से कुछ हिस्सों के उन्होंने खुद इससे चैलेंज किया। लेकिन जज साहब ने जो पूरी कहानी को सुना कहानी सुनने के बाद और जो जो वकील ने जिरह  की है और एक-एक सबूत को बड़े ढंग से तरतीब के साथ रखा तो फिर अदालत यानी कि न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश की न्यायाधीश होती हैं सुची श्रीवास्तव 24 सितंबर 2025 को उन्होंने कहा कि इस व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है और पचास हजार जुर्माने का भी इन पर दंड रखा जाता है। जब यह खबर अखबारों में प्रकाशित होती है तो 10 साल पुराने इस घटनाक्रम की पूरी लोगों को याद आ जाती है कि 10 साल पहले किस ऐसे दरोगा ने किस तरह से प्यार का नाटक किया। किस तरह से एक हत्याकांड को अंजाम दिया था। दरअसल ये उस दौर का बहुत चर्चित घटनाओं में से एक घटना थी। दोस्तों इस पूरे घटनाक्रम को सोने का उद्देश्य किसी को परेशान करना नहीं है। किसी का दिल दुखाना नहीं है। बल्कि आपको जागरूक करना है। आपको सचेत करना है। और आपको यह बताना है कि जिस तरह से दरोगा ने चालाकी की और चालाकी करने के बाद एक शादी के बाद दूसरी शादी कर लेता है। उसे लगा कि शायद कभी पता नहीं चल पाएगा। लेकिन अगर जब पता चलेगा तो सब कुछ राजीनामा हो जाएगा, ठीक-ठाक हो गया, हो जाएगा। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। ना केवल खुद की जिंदगी बर्बाद हुई बल्कि दो बच्चे जो पहले थे उनकी भी जिंदगी बर्बाद हुई, पत्नी की भी जिंदगी बर्बाद हुई। एक की हत्या कर देता है और एक बेटी सुनाया जिसको शायद नानी पाल रही हैं। तो इस तरह से कई लोगों की एक आदमी ने गलत फैसला लेकर इन सब की जिंदगी बर्बाद कर दी और शायद वो सोच रहा था कि कभी पकड़ा नहीं जाएगा। पकड़ा जाएगा तो तन पर वर्दी है। कोई क्या उसका बिगाड़ेगा। हालांकि इस बात पर जज साहब ने भी बड़ी ऐतराज किया, आपत्ति जताई कि इस मामले में जो चार्जशीट लगाई गई है, जो जांच पड़ताल की गई है, कहीं ना कहीं दरोगा का फेवरी करने की कोशिश की है। इसके जो जांच अधिकारी है, उसके खिलाफ भी कारवाई होनी चाहिए। ऐसा बड़े अधिकारी को लिखा भी गया है। आप सब लोग अपना ख्याल रखें सुरक्षित रहें जय हिंद जय भारत

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