Israel Hmas War:
यह ख्याल आता होगा कि
आखिर दुनिया में चल क्या रहा है कौन किस पर क्यों हमले कर रहा है और यह हमले कब
रुकेंगे इजराइल(Israel)यहूदी या फिलिस्तीन का नाम सुनते ही जहन में मरने मारने मिसाइल
हमलो या बम धमाकों की खबरें क्यों तैरने लगती हैं कभी-कभी तो लगता है जैसे युद्ध
और आतंकी हमले अब एक महामारी बन चुके हैं जिसका कोई इलाज नहीं है कोई अंत नहीं
है|
लेकिन जब भी आप इजराइल
फिलिस्तीन(Israel Hmas War)के बीच युद्ध की खबरें सुनते हैं तो यह सवाल भी मन में जरूर आता होगा कि
यह सब आखिर हो क्यों रहा है आखिर किस गलती का खामियाजा उठा रहे हैं यहां के
बेगुनाह लोग और मासूम बच्चे क्या यह लोग किसी सोची समझी साजिश के शिकार हैं यहूदी
और मुस्लिम समुदाय यह दोनों क्यों एक दूसरे के खून के प्यासे हैं इनमें कौन किससे
मजबूत है और कौन किसे हरा देगा गलत कौन है यहूदी या मुस्लिम लड़ाई की शुरुआत किसने
की और कब की यूनाइटेड नेशंस अमेरिका और दूसरे देश आखिर कभी ना खत्म होने वाले इस तमाशे को चुप
होकर क्यों देखते रहते हैं |
Israel Arab War:
ऐसे न जाने कितने ही
अनसुलझे सवाल आपके दिमाग में घूमते होंगे जिनका जवाब आपको नहीं मिला होगा आज
इतिहास गवाह है मैं इस पूरे खून खराबे की जड़ तक ले चलेंगे आपको और जानेंगे इस
संघर्ष का पूरा इतिहास हम जानते हैं कि इजराइल और अरब के बीच पिछले कुछ दशकों में
सिलसिलेवार तरीके से युद्ध हुए हैं इन युद्धों की जड़े बहुत पुरा है यह बात सही है
कि दोनों के बीच लड़ाइयां फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जे को लेकर हुई हैं लेकिन अगर
गौर से देखा जाए तो यह लड़ाई जमीन से कहीं ज्यादा धार्मिक वर्चस्व की लड़ाई
है |
विदेशी ताकतों ने हमेशा
इन लड़ाइयों में आग में घी डालने का ही काम किया है मुस्लिम देशों का कहना है कि
जिस जमीनी हिस्से को आज इजराइल कहा जाता है वह दरअसल फिलिस्तीन ही है और यहां आने
वाले यहूदियों ने इस पर कब्जा किया है तो क्या यह बात सही है कि यहूदी लोग
फिलिस्तीन इलाके के लिए बाहरी थे लेकिन यहूदियों का तो यह कहना है कि यह मातृभूमि
हमारी है और मुस्लिमों ने यहां कब्जा किया और अगर सच में ऐसा था कि यहूदी ही यहां
के असली निवासी थे तो दूसरे धर्म को मानने वालों ने कब्जा कैसे कर लिया सच्चाई
आखिर क्या है |
आईये सबसे पहले जानते है इजराइल के इतिहास के बारे में :
इसे समझने के लिए हमें
यहूदियों के इतिहास पर नजर डालनी होगी अलग-अलग सोर्सेस बताते हैं कि यहूदी धर्म
दुनिया के सबसे पुराने धर्मों या समुदायों में से एक है करीब 4000 साल पुराना इनका
इतिहास है और आज का जो फिलिस्तीन और इजराइल है उसी जगह पर इस धर्म की शुरुआत हुई
बस फर्क इतना है कि पुराने ग्रंथों में पहले इन दोनों इलाकों को मिलाकर खन्नन कहा
गया है आज की तारीख में प्राचीन खन्नन इलाके में भौगोलिक नजरिए से दक्षिणी लेवेंट
यानी इजराइल और फिलिस्तीन के अधिकार में आने वाले वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी को
शामिल किया जाता है |
जाहिर है कि इन सभी जगहों
के बारे में आप आए दिनों खबरों में सुनते ही हैं आप यह जानकर चौक जाएंगे कि यहूदी
धर्म भी उसी मूल धर्म से निकला है जहां से ईसाई और मुस्लिम धर्म का जन्म हुआ हम
बात कर रहे हैं अब्राहम संप्रदाय की जिसे मानने वाले लोग एक ही ईश्वर को मानते हैं
इजराइल के प्राचीन इतिहास के बारे में ज्यादातर बातें हमें हिब्रू बाइबल से जानने
को मिलती हैं इस बाइबल में ही लिखा गया है कि यहूदी और ईसाई धर्म का जन्म अब्राहम
के पुत्र आइजक जबकि इस्लाम धर्म की शुरुआत अब्राहम के एक और बेटे इस्माइल से हुई
अब एक और सवाल मन
में यह भी उठता है कि यहूदी धर्म के लोग जिस जगह पर रहते थे उसे वे इजराइल क्यों
कहते थे |
दरअसल हिब्रू बाइबल के
मुताबिक अब्राहम के पोते और आइजक के बेटे जैकब को हेब्रा ने इजराइल नाम दिया था
इजराइल के बच्चों और उनकी आने वाली पीढ़ियों को हेब्रोन में इजराइली कहा गया ऐसे
में बात साफ हो जाती है कि वर्तमान इजराइल कोई एक दो दशक पुरानी राजनीतिक उत्पत्ति
नहीं है बल्कि हजारों साल पुराना इसका इतिहास है इजराइल समर्थक अरब देशों के इस
दावे को कि फिलिस्तीन की धरती पर यहूदियों ने कब्जा किया है इसी आधार पर खारिज
करते हैं अब यहूदियों की आबादी जैसे-जैसे बढ़ती गई उनका फैलाव भी चारों तरफ होने
लगा |
मिस्र सामराज्य का फैलना :
मिस्र चूंकि इजराइल से
लगा हुआ था इसलिए यहां उनकी तादाद काफी ज्यादा हो चुकी थी यह वही वक्त था जब नील
नदी के आसपास वाले इलाके में मिस्र साम्राज्य फल फूल रहा था उस वक्त मिस्र के राजा
फराओ को इजराइल की बढ़ती आबादी काचोट रही थी क्योंकि मिस्र सभ्यता के लोगों और
यहूदियों की विचारधारा बिल्कुल अलग-अलग थी मिस्र के लोग एक से ज्यादा भगवानों में
विश्वास रखते थे जबकि यहूदियों का मानना था कि ईश्वर एक है और वह मर नहीं सकता |
अपने साम्राज्य पर कोई आंच ना आए इसके लिए फराओ ने इजराइली हों को बंदी बना लिया करीब 12वीं सदी ईसा पूर्व के दौरान पैगंबर मूसा ने सैकड़ों सालों से बंदी रहे इजराइली हों को मिस्र साम्राज्य के चंगुल से बाहर निकाला पैगंबर मूसा के इस अभियान के बाद यहूदी संप्रदाय में उन्हें पूजा जाने लगा था 11वीं सदी ईसा पूर्व में किंग डेविड ने इजराइली हों पर शासन किया बाद में उसके बेटे किंग सोलोमन ने यहूदियों के लिए पहला पवित्र मंदिर बनवाया यह मंदिर जेरूसलम में बनवाया गया था यह वही जगह है जिसके लिए ईसाई मुस्लिम और यहूदी धर्म को मानने वाले लोग आज तक लड़ते आए हैं |
जेरूसलम मंदिर रहा विवाद की जड़:
तीनों ही धर्म इस जगह पर
अपना धार्मिक दावा करते हैं और मौजूदा इजराइल और फिलिस्तीन दोनों ही इसे अपनी
राजधानी बताते हैं किंग सोलोमन ने लोगों को एकजुट कर यूनाइटेड किंगडम ऑफ इजराइल
बनाया आपसी मनमुटाव की वजह से वक्त के चलते यहूदी दो गुटों में बट गए जो उत्तरी
इलाके में थे उनसे मिलकर बना किंगडम ऑफ इजराइल और दक्षिण में रहने वाले लोगों से
मिलकर बना किंगडम ऑफ जुड़ा आगे चलकर आठवीं सदी ईसा पूर्व में इराक ईरान और सीरिया
में सीरिया साम्राज्य ने यहूदियों पर हमला कर किंगडम ऑफ इजराइल को खत्म कर दिया |
वक्त बदला लेकिन यहूदियों
पर हमले नहीं रुके छठी सदी ईसा पूर्व में रही सही कसर बैबल के शासकों ने पूरी कर
दी आप जरा पश्चिम एशिया के नक्शे को देखिए इजराइल के पूर्व में कुछ दूरी पर टिगरिस
और यूफ्रेट्स नदियां बहती हुई दिखेंगी इतिहास की किताबों में आपने इन्हें दजला और
फरात के नाम से पढ़ा होगा इन्हीं नदियों के किनारे प्राचीन बैबल की सभ्यता का
विकास हुआ था हमलावर तेवर के बैबल शासकों ने इजराइल पर हमला कर जेरूसलम को जीत
लिया और उसके पहले पवित्र मंदिर को जमींदोज कर दिया हजारों इजराइली हों का जबरन
देश निकाला कर दिया गया |
आने वाली कई सदियों तक इजराइल
की धरती पर दूसरी कई बाहरी शक्तियों ने राज किया ऐसा कोई नहीं था जिसने यहूदियों
के कमजोर होने का फायदा ना उठाया हो फिर चाहे वह पर्शिया हो ग्रीक हो रोमन हो
इस्लामिक हो या फिर तुर्क हो |
रोम के शासकों ने यहूदियों पर ढाया जुल्म :
पहली सदी के दरमियान रोम
के शासकों ने भी यहूदियों को नहीं बख्शा अपने राजनीतिक आर्थिक और सैन्य फायदे के
लिए उन्होंने यहूदियों पर हुक्म चलाया रोम ने यहूदियों पर जुल्म की सारी हदें पार
कर दी यहूदियों की पवित्र जेरूसलम की दीवार को ढहा दिया गया रोम के जालिमों ने
मंदिरों को ही नहीं तोड़ा बल्कि हजारों हजार यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया|
जेरूसलम को पूरी तरह से
कब्जे में ले लिया गया और यहूदियों पर इस जगह जाने की पाबंदी लगा दी गई हजारों
परिवारों को गुलाम बनाकर रोम भेज दिया गया यहां हो रही क्रूरता के चलते यहूदियों
को बगावत के लिए मजबूर होना पड़ा शासन के खिलाफ उठी इसी बगावत के साथ रबक यहूदी
वाद की शुरुआत मानी जाती है यहूदी समाज में अभी भी बड़े पैमाने पर रबन की
विचारधारा को माना जाता है बगावत के बाद हजारों परिवार रोम छोड़कर यूरोप के दूसरे
हिस्सों में जाने लगे धीरे-धीरे यहूदियों की तादाद यूरोप के पूर्वी और पश्चिमी
हिस्से में बढ़ने लगी यहीं से हमें समझना होगा कि आखिर इजराइल की जमीन पर पिछले कुछ दशकों
से झगड़ा क्यों हो रहा है |
लोग समझ नहीं पा रहे हैं
कि इजराइल में यहूदी बाहरी हैं या स्वदेशी क्या उन्होंने जबरन इजराइल पर कब्जा
किया इजराइल की जमीन ही उनकी अपनी भूमि है अगर वे पहले से ही इजराइल के थे तो वे
यूरोप कैसे पहुंचे असल में इस धर्म की स्थापना के बाद से यहूदी लोग आसपास के
शासकों से हमेशा परेशान रहे उन्हें इजराइल छोड़कर कभी मिस्र जाना पड़ा तो कभी वे
यूरोप की गलियों में भटकते रहे रोम में यहूदियों की दासता की कहानी सुनकर हम यह तो समझ सकते हैं
कि यूरोप में यहूदी जनता कैसे बढ़ने लगी लेकिन उन्हें आखिरकार अपनी सरजमी क्यों
आना पड़ा इसके बारे में आपको आगे जानने को मिलेगा |
रोम से निर्वासित होने के
बाद यहूदियों को कुछ शांति मिली अगले सैकड़ों सालों तक वे यूरोप में शांति से रहे
इस दौरान यहूदियों की जनसंख्या तेजी से बढ़ी और वे पूरे यूरोप में फैल गए इन
वर्षों को यहूदियों के जीवन का गोल्डन एरा कहा जाता है 11वीं सदी तक सब
कुछ ठीक-ठाक चला लेकिन इस दौरान यूरोप में पिछले कुछ सालों में धर्म युद्ध की
भूमिका बन चुकी थी ईसाइयों को लगने लगा था कि इस्लाम धर्म का
का वर्चस्व बढ़ रहा है और उनकी धार्मिक जगहों पर कब्जा किया जा रहा है |
इस्लाम के पतन होने से डरे अरब देश :
इधर इस्लाम से जुड़े
साम्राज्य इस्लाम के पतन और ईसाई धर्म के मजबूत होने से डरे थे इन दोनों के बीच
यहूदी कैसे बच सकते थे इसलिए धर्म और संप्रदाय को बचाने को लेकर हुए अभियानों में
यहूदियों को भी बीच में पिसना पड़ा 30 दिसंबर के दिन
स्पेन में एक नृशंस घटना को अंजाम दिया गया मुस्लिम समुदाय की एक भीड़ ने ग्रेनेडा
स्थित रॉयल पैलेस पर हमला कर हजारों यहूदी परिवारों को मौत के घाट उतार दिया यूरोप
में धर्म युद्ध चरम पर था साल 1096 से यूरोप में यहूदियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रताड़ना शुरू
हो गई |
मिडिल ईस्ट में अपनी
पवित्र भूमि पर दावे को मजबूत करने के लिए यहूदियों को दो विकल्प दिए गए या तो वे
ईसाई बन जाए या फिर मौत का रास्ता चुने लिहाजा बड़ी तादाद में यहूदी लोगों का
नरसंहार कर दिया गया यूरोप में साल दर साल स्थिति बदतर होती चली गई क्या फ्रांस
क्या स्पेन सब जगह से यहूदियों को भगाया जाने लगा 1492 में स्पेन में यहूदियों के देश निकाला करने के
लिए बड़े अभियान चलाए गए उस वक्त करीब 2 लाख लोगों को धक्के मारकर स्पेन की सीमा से बाहर कर दिया
गया |
जिसमें कईयों की जान चली
गई इस निष्कासन के बाद ज्यादातर यहूदी पुर्तगाल चले गए लेकिन 19वीं सदी में
उन्हें यहां से भी बाहर कर दिया गया इस दरमियान हालांकि यहूदियों ने धर्म में कुछ
सुधार कर खुद को मजबूत करने की कोशिश की यूरोप में कुछ जगहों पर यहूदी राजनीतिक और
आर्थिक तौर पर मजबूत होते दिखने लगे लेकिन यह बात जर्मन के तानाशाह हिटलर को रास
नहीं आ रही थी इतिहास का मध्यकाल से आधुनिक काल आ चुका था लेकिन इजराइलों पर
सिलसिलेवार धार्मिक हमले रुके नहीं हिटलर
ने जर्मनी की जनता को यहूदियों के खिलाफ भड़काया और उन्हें देश से बाहर निकालने की अपील
की |
1945 में जर्मनी में यहूदियों का हुआ नरसंहार:
जर्मनी और पूर्वी यूरोप
में यहूदियों पर जुल्म और बढ़ने लगा उन्हें चुनचुन कर मारा जाने लगा 1945 के दौरान जर्मनी
में हिटलर ने करीब 6 लाख यहूदियों को
दर्दनाक मौत के घाट उतरवा दिया इस बड़े नरसंहार को द होलोकास्ट कहा जाता है बड़े
पैमाने पर हुई मारकाट के बाद यहूदी यूरोप छोड़ने को मजबूर हो गए और उन्हें सालों बाद फिर से
इजराइल का रुख करना पड़ा अब तक हम यहूदियों की पूरी कहानी समझ रहे थे लेकिन
मध्यकाल से लेकर आधुनिक समय के बीच इजराइल की धरती पर काफी उठापटक हो चुकी थी आपको
बता दें कि 10वीं सदी ईसा
पूर्व के किंग डेविड के शासन से ही फिलिस्तीनिज्म में कई फिलिस्तीनी शामिल थे जो
मूल रूप से गाजा से ताल्लुक रखते थे सातवीं शताब्दी के दरमियान जेरूसलम का
इस्लामीकरण होने लगा था इस वक्त अरब शासकों का यहां दबदबा हुआ करता था इसलिए
धीरे-धीरे इजराइल फिलिस्तीन इलाके में इस्लाम मजबूत हो गया लेकिन जब मध्यकाल में यूरोप
में धर्म युद्ध शुरू हुए तो इजराइल की जमीन पर भी काफी हलचल हुई |
पवित्र भूमि को को लेकर
मुस्लिमों और ईसाइयों में लड़ाइयां हुई आगे चलकर 1517 से 1917 के बीच ओटोमंस ने विवादास्पद इजराइल और उसके आसपास के
इलाके पर शासन किया इस्लाम धर्म को मानने वाला ऑटोमन साम्राज्य उस वक्त सबसे
ताकतवर साम्राज्य था पश्चिम एशिया के अधिकांश हिस्से उत्तरी अफ्रीका और यहां तक
दक्षिणी पूर्वी यूरोप में भी उसका दबदबा था यहां से हम समझ सकते हैं कि यहूदियों
की गैर मौजूदगी में किस तरह भूमध्य सागर से जॉर्डन नदी के बीच वाले हिस्से यानी फिलिस्तीन
में इस्लाम की मौजूदगी बढ़ी |
वैसे इजराइल अब इजराइल
नहीं रह गया था वास्तव में वह फिलिस्तीन बन चुका था 20वीं सदी के
शुरुआती दशकों में जब पहला विश्व युद्ध हुआ तो वैश्विक भू राजनीति में काफी बड़े
बदलाव हुए 1917 में इंग्लैंड ने
फिलिस्तीन पर अपने कब्जे की घोषणा कर दी इस घोषणा के साथ ही उसके विदेश सचिव आर्थर
जेम्स बाल्फ ने एक लेटर ऑफ इंटेंट पेश किया इसे बाल फोर घोषणा पत्र कहते हैं इस
दस्तावेज में चालाकी के साथ लिखा गया हम यहूदियों के साथ अपनी पूरी सहानुभूति
प्रकट करते हैं और फिलिस्तीन में उनके लिए एक राष्ट्र की घोषणा करते हैं |
सवाल यह था कि इंग्लैंड
ने अचानक ऐसी घोषणा क्यों की आपको क्या लगता है असल में 1917 में विश्व युद्ध
अपने चरम पर था और मिडिल ईस्ट में जीत सुनिश्चित करने के लिए उसे मित्र देशों का
साथ चाहिए था इसलिए मित्र देशों में मौजूद यहूदियों का समर्थन पाने के लिए ही उसने
बाल फोर घोषणा पत्र को सामने रखा था 1918 में मिडिल ईस्ट में फैले ऑटोमन साम्राज्य का अंत हो चुका
था जिसके साथ पहला विश्व युद्ध भी खत्म हो गया इसके साथ ही ब्रिटेन ने फिलिस्तीन
को पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में ले लिया जिसमें शामिल था वर्तमान का इजराइल
फिलिस्तीन और जॉर्डन यह बात सही है कि घोषणापत्र जारी करने के पीछे ब्रिटेन का
अपना फायदा था लेकिन यहूदियों के लिए तो यह एक बड़ी राहत की बात थी |
पिछले सैकड़ों सालों में
यूरोप में भटक रहे यहूदियों के लिए यह पहला मौका था कि किसी देश ने ऑफिशियल यह माना
कि कब्जा किए गए फिलिस्तीन पर उनका हक है और वही उनकी अपनी जमीन है बाल फोर घोषणा
के बाद ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर ब्रिटिश मैंडेट भी जारी किया दोनों ही दस्तावेजों
पर 1922 में लीग ऑफ
नेशंस ने अपना अप्रूवल भी दे दिया इस सहमति के साथ ही ब्रिटेन को फिलिस्तीन पर अगले
कई सालों के लिए एडमिनिस्ट्रेटिव कंट्रोल मिल गया फिलिस्तीन की धरती पर ब्रिटेन की
गद्दी तब तक रही जब तक कि दूसरा विश्व युद्ध खत्म नहीं हुआ और इजराइल आजाद देश
नहीं बन गया |
हालांकि इन बीच के वर्षों
में फिलिस्तीन और आसपास के इलाके में काफी कुछ उथल-पुथल हुई फिलिस्तीन पर ब्रिटेन
के कब्जे से अरब जगत खुश नहीं था वह इसलिए भी नाराज था कि ब्रिटेन अरब के आजाद
फिलिस्तीन राष्ट्र बनाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा था अरब के इस्लामिक
हुक्मरानों को इस बात का डर था कि कहीं फिलिस्तीन उनके हाथ से पूरी तरह ना फिसल
जाए इसलिए वे ब्रिटिश मेंडेट का लगातार विरोध करते रहे |
19वी सदी के आखिर में यहूदीवाद की सुरुआत:
उनका डरना भी लाजमी था
इधर फिलिस्तीनी धरती पर ब्रिटिश मौजूदगी यहूदियों के लिए राहत की बात थी इसलिए
यूरोप से फिलिस्तीन की तरफ यहूदियों की घर वापसी तेज हो गई घोषणा पत्र और फिलिस्तीन में ब्रिटिश सरकार के आ
जाने से यहूदियों को ताकत मिली अपने लोगों को मजबूत बनाने के लिए और इजराइल को फिर
से पाने के लिए 19वीं सदी के आखिर
में यहूदी वाद आंदोलन पहले से ही शुरू हो चुका था अगले एक दो दशकों के दौरान
हजारों यहूदी इजराइल वापस आ चुके थे मिडिल ईस्ट में यहूदियों की तादाद साल दर साल
बढ़ती जा रही थी नतीजा यह हुआ कि इस इलाके में यहूदियों और मुस्लिमों के बीच झगड़े
तेज हो गए वक्त के साथ फिलिस्तीन में यहूदी मजबूत होने लगे थे |
धार्मिक जगहों पर बनायी पकड़ :
धीरे-धीरे राजनीतिक और
खास तौर पर धार्मिक जगहों पर यहूदी लोगों की पकड़ बन रही थी लिहाजा यहां
सांप्रदायिक दंगे भी होने लगे जिसमें दोनों पक्षों की तरफ से कई लोगों की मौत हुई
इजराइल की धरती पर ब्रिटिश सत्ता के साय में यहूदी कुछ मजबूत हुए तो उन्हें कुछ
मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा यूरोप में 1930 के दशक से जर्मनी में यहूदियों पर हमले बढ़ने लगे थे इस
बारे में मैं आपको पहले ही बता चुका हूं कि किस तरह दूसरे विश्व युद्ध के वक्त
लाखों यहूदियों को मार दिया गया |
जब तक दूसरा महायुद्ध
खत्म नहीं हुआ तब तक यहूदी मारे जाते रहे इस वजह से भी लाखों यहूदी पलायन करने को
मजबूर हुए और उन्हें फिलिस्तीन में ही शरण मिली फिलिस्तीन में अचानक बड़ी यहूदी
तादाद से स्थिति विस्फोटक हो चुकी थी क्योंकि अब यहूदी अपने इजराइल राष्ट्र के गठन
के लिए उग्र हो चुके थे 1945 में दूसरा विश्व
युद्ध खत्म हुआ और इसमें अमेरिका सबसे मजबूत देश बनकर उभरा सितंबर में युद्ध खत्म
हुआ और एक ही महीने के अंदर यूनाइटेड नेशंस(UN)का गठन हुआ कल्पना की गई कि शायद लीग
ऑफ नेशंस के बाद यह अंतरराष्ट्रीय इकाई निष्पक्ष होगी सबके लिए काम करेगी लेकिन
ऐसा था नहीं |
1947 में बुलाई गयी अंतररास्ट्रीय महासभा की बैठक :
इसके गठन से लेकर ही इस
पर अमेरिका के दबदबे की बात किसी से छिपी नहीं है चेहरा यूनाइटेड नेशंस का होता था
पर फैसला अमेरिका का क्रिएशन ऑफ ज्यूज स्टेट 1947 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक बुलाई गई इसमें
प्रस्ताव 181 के मतों से पारित किया गया
इस संख्या को आप हमेशा याद रखिए क्योंकि यही वो दस्तावेज है जिसने यहूदियों के
जिंदगी बदल दी विज्ञान सैन्य और खुफिया ऑपरेशंस में मजबूत जिस महाशक्ति इजराइल को
आप देख रहे हैं यह इसी प्रस्ताव की देन है |
1 अगस्त 1948 के पहले तक ब्रिटिश मैंडेट को खत्म कर दिया जाए फिलिस्तीन
को दो भागों में बांट दिया जाए एक स्वतंत्र अरब राज्य और यहूदियों के लिए स्वतंत्र
यहूदी राज्य इस इलाके के बंटवारे के लिए बनाया गया नक्शा आपको बड़ा अजीबोगरीब
लगेगा दक्षिण पश्चिम में मौजूद गाजा पट्टी और पूर्व में मौजूद वेस्ट बैंक के इलाके
अरब राज्य को दिए गए जिसे आज इस्लामिक देश फिलिस्तीन कहते हैं |
नक्शे के बाकी नीले रंग के हिस्से को यहूदी राज्य को सौंप दिया गया जिसे अब इजराइल कहते हैं बाकी जेरूसलम जिसे आप वेस्ट बैंक के बीचोंबीच देख रहे हैं उसे स्पेशल स्टेटस दे दी गई जिस पर संयुक्त राष्ट्र को प्रशासनिक नियंत्रण दिया गया इसकी वजह यहां की धार्मिक पवित्रता है जिसे ना केवल यहूदी और मुस्लिम बल्कि ईसाई भी बहुत महत्त्वपूर्ण और पवित्र मानते हैं जेरूसलम पर बाद में दोनों ने अपनी राजधानी होने का दावा पेश किया जो आज भी कायम है इस पूरी योजना को बनाने में अमेरिका से काफी सलाह मशवरा की गई थी कि क्या मिडिल ईस्ट में एक यहूदी राज्य बनाने की जरूरत है दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों का जिस तरह कत्लेआम हुआ था अमेरिका को लगता था कि यहूदी राज्य बनाना हिटलर की क्रूरता का जवाब देने के लिए काफी अहम रहेगा |
ऐसा करने का यह सही वक्त
भी है साथ ही उसे यहूदियों का समर्थन मिलेगा और हमेशा-हमेशा के लिए मिडिल ईस्ट में
अमेरिका की मौजूदगी हो जाएगी जिसे आप आज तक देख रहे हैं संयुक्त राष्ट्र की तरफ से
जारी विभाजन योजना को अभी एक साल भी नहीं हुआ था कि मई 1948 में इजराइल ने
खुद को एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया 14 मई यहूदी इतिहास की सबसे बड़ी तारीख मानी जाती है इसी दिन
तेल अवीव में यहूदी एजेंसी के चेयरमैन बेन गुरियन ने नए यहूदी राष्ट्र इजराइल की
घोषणा कर दी थी अपने धर्म के लिए आंदोलन चलाने वाले बेन गुरियन को ही इजराइल का
पहला प्रधानमंत्री बनाया गया |
अरब देशों ने 1948 में इजराइल पर बोला हमला :
अरब जगत यह सब देखकर काफी
गुस्से में था क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की योजना का उसने शुरू से ही विरोध किया था
इधर इजराइल द्वारा आजादी की घोषणा के साथ ब्रिटेन ने अपना फिलिस्तीन मैंडेट भी
खत्म कर दिया और अपनी आर्मी को पीछे लौटने को कह दिया पिछले दो दशकों से भी ज्यादा
वक्त से फिलिस्तीन पर शासन करने वाली ब्रिटिश आर्मी ब्रिटेन
वापस तो लौट गई लेकिन अरब और इजराइल को लड़ता हुआ छोड़ गई जो 1948 से आज तक रुक
नहीं है |
अरब इजराइल वॉर 1948 आजादी का ऐलान
किए अभी 24 घंटे भी नहीं
बीते थे कि अरब देशों ने इजराइल को चारों तरफ से घेरकर धावा बोल दिया हमले के लिए
पांच देश एकजुट हो गए लेबनान सीरिया जॉर्डन इराक और मिस्र हमले की शुरुआत तेल अवीव
पर मिसाइल दागने के साथ हुई इस युद्ध में अरब देशों ने इजराइल को अकेला समझकर
कमजोर समझने की गलती की लेकिन यह गलतफहमी उन पर भारी पड़ी इजराइल भले मैदान में
अकेला था लेकिन कुछ पश्चिमी देश उसका अंदर से भारी सपोर्ट कर रहे थे |
पांच देशों के साथ आने और
सऊदी अरब की तरफ से मिस्र को सैन्य मदद देने के बावजूद इजराइल अरब पर भारी पड़ गया
1949 में युद्ध खत्म
होते-होते इजराइल ने ब्रिटिश फिलिस्तीन के दो तिहाई हिस्से को अपने कब्जे में ले
लिया जबकि गाजा पट्टी मिस्र और वेस्ट बैंक जॉर्डन के नियंत्रण में आ गया युद्ध
खत्म करने के लिए इजराइल और अरब के बीच कोई युद्ध विराम समझौता नहीं हुआ था बल्कि
जिन पांच देशों ने इजराइल के खिलाफ जंग छेड़ी थी उनके साथ इजराइल की अलग-अलग
आर्मस्टर लाइन एग्रीमेंट किए गए यानी इजराइल और पांचों देशों की सीमा के साथ
अलग-अलग युद्ध विराम रेखाएं खींची गई जिसे मैप पर आप आज भी देख सकते हैं |
गाजा पट्टी इजराइल के हाथ
से निकल चुकी थी अब वह इस फिराक में था कि कब उसे मौका मिले और मिस्र के कब्जे
वाली गाजा पट्टी को भी अपने हिस्से में ले ले 1956 में कुछ ऐसा ही मौका उसके सामने आ गया स्वेज नहर जो लाल
सागर को भूमध्य सागर से जोड़ती है मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल नासिर ने जुलाई 1956 में इसका
राष्ट्रीयकरण कर दिया ऐसा क्यों किया गया इसकी अपनी कुछ वजह रही होंगी |
इजराइल ने मिस्र पर बोला धावा:
स्वेज नहर के
राष्ट्रीयकरण के साथ ही फ्रांस ब्रिटेन और इजराइल के सेनाओं ने मिस्र पर धावा बोल
दिया ब्रिटेन स्वेज नहर को फिर से अपने नियंत्रण में लेना चाहता था जबकि इजराइल का
मकसद था अपने दक्षिण हिस्से को लाल सागर से जोड़ना उसका नहर से कोई लेना देना नहीं
था असल में मिस्र ने सिनाई प्रायद्वीप में अपनी सेना लगा रखी थी |
अगर इस जलसंधि को अपने
कब्जे में रखता तो इजराइल का संपर्क लाल सागर से टूट जाता ब्रिटेन और फ्रांस के
सहारे इजराइल सिनाई प्रायद्वीप पर भी कब्जा करने की फिराक में था और हुआ भी कुछ ऐसा ही
युद्ध शुरू हुए अभी 10 दिन भी नहीं हुए
थे कि मिस्र ने हथियार डाल दिए नतीजा यह हुआ कि गाजा पट्टी समेत पूरा सिनाई
प्रायद्वीप अब इजराइल के कब्जे में आ गया इजराइल स्वेज नहर का इस्तेमाल मुफ्त में
करने लगा हालांकि जब जब भारी विरोध हुआ से दबाव पड़ा तो इजराइल ने 1957 के मार्च महीने में सिनाई प्रायद्वीप से अपनी
सेना को वापस बुला लिया 1948 और 1956 के स्वेज युद्ध
दोनों में लगातार हार के बाद अरब देश तिल मिलाए हुए थे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी
छवि कमजोर साबित हो
रही थी |
इधर इजराइल के साथ सीमा
पर झड़पें बंद नहीं हुई साथ ही इन युद्धों की वजह से कई फिलिस्तीनी बेघर हो गए थे
इन शरण लेने वाले फिलिस्तीनिज्म कि वक्त आने पर इजराइल के खिलाफ इनका इस्तेमाल
किया जा सके 1967 में फिर वही
वक्त आया जब इजराइल और अरब देश फिर से एक दूसरे के सामने हो गए इजराइल को तीन तरफ
से घेरा गया उत्तर में सीरिया पूर्व में जॉर्डन और पश्चिम में मिस्र बड़ी बात यह
है कि तीनों मोर्चों पर अरब देशों को फिर से मुं की खानी पड़ी अरब देश 6 दिन भी सही से
नहीं टिक पाए इजराइल की वायुसेना ने आसपास के लगभग पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया |
गोलन हाइट्स को इजराइल ने लिया अपने कब्जे में:
अरब देश हर तरफ से घाटे
में थे इजराइल लगभग 1000 मौतों के बदले
अरब देशों को 15000 सैनिकों और आम
नागरिकों को खोना पड़ा लेकिन इससे भी बड़ा नुकसान यह था कि गाजा पट्टी और सिनाई
प्रायद्वीप मिस्र के हाथ से निकल गए वहीं जॉर्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम
और सीरिया से गोलन हाइट्स भी इजराइल ने अपने कब्जे में ले लिया मिलकर लड़ने वाले
इन देशों को अकेले इजराइल से हार मिलने के बाद इन देशों का सम्मान दांव पर लगा था
इसलिए 1973 में मिस्र और
सीरिया ने मिलकर फिर से इजराइल पर धावा बोला इजराइल उस दिन सभी इजरायली अपना
त्यौहार मना रहे थे उसी दिन ताबड़तोड़ हवाई हमले किए गए यम किप्पुर यहूदियों के
लिए सबसे पवित्र त्यौहार का दिन होता है और इसीलिए इस दिन को चुना गया था ताकि
ज्यादा से ज्यादा लोग मारे जा सकें दो हफ्तों तक यह लड़ाई चली लेकिन हुआ वही जो
पहले हो चुका था |
दोनों देशों को फिर मात
खानी पड़ी और आखिरकार संयुक्त राष्ट्र के बीच में आने के बाद ही लड़ाई बंद हुई
सीरिया को लगा कि गोलन हाइट्स का पहाड़ी इलाका जो पहले उसके हाथ से जा चुका था अब
शायद उसे वापस मिल जाएगा लेकिन हुआ ऐसा नहीं मिस्र का सिनाई प्रायद्वीप अभी भी इजराइल के
कब्जे में था बार-बार मात खाने के बाद आखिर मिस्र ने हार मान ली और समझदारी दिखाते हुए 1978 में इजराइल के
साथ एक शांति समझौता कर लिया कैंप डेविड अकॉर्ड नाम के इस समझौते में तय हुआ कि
मिस्र को उसका सिनाई प्रायद्वीप वापस मिल जाएगा और वेस्ट बैंक पर फिलिस्तीनिज्म थी
बल्कि फिलिस्तीन देश को बनाने के लिए पीएलओ नाम का संगठन भी काम कर रहा था जो इन
इस्लामिक देशों के लिए प्रॉक्सी वॉर भी लड़ता था पीएलओ यानी फलेस्टाइन लिबरेशन
ऑर्गेनाइजेशन 1964 से ही एक्टिव था
पिछले कुछ सालों में लेबनान में रहकर इस संगठन ने यहूदियों पर कई हमले किए |
लेबनान पर बोला हमला :
इजराइल का उत्तरी इलाका जो
लेबनान से लगा हुआ था जब यहां पीएलओ ने हद पार कर दी तो इजराइल(ISRAEL)ने 1982 में लेबनान(LEBNAN)पर
हमला बोल दिया इस हमले के बाद पीएलओ कमजोर जरूर हुआ लेकिन से इजराइल के लिए एक नई
मुसीबत खड़ी होने वाली थी और यह इजराइल को पता नहीं था पीएलओ कमजोर हुआ तो लेबनान
के शिया मुस्लिम एक हुए और उन्होंने एक मिलिटेंट ग्रुप बनाया हिज्बुल्लाह के नाम
से यह वही हिज्बुल्लाह है जिसे 60 से ज्यादा देश अब एक आतंकी गुट मानते हैं और आज की तारीख
में इजराइल के लिए यही गुट सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है 2023 से इजराइल और
फिलिस्तीन के बीच जो युद्ध चल रहा है उसमें हिज्बुल्लाह मानो किसी देश की प्रशिक्षित सेना की तरह
इजराइल पर टूट पड़ा है इस युद्ध में हिजबुल्ला ने इजराइल को काफी नुकसान पहुंचाया
है हालांकि बदले में इजराइल ने भी हिज्बुल्लाह की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं
छोड़ी है इजराइल के वजूद में आने के बाद से ही आपसी टकराव रुके नहीं है वेस्ट बैंक(WEST BANK)और गाजा पट्टी(GAZA)पर उसके कब्जे के बाद इस्लामिक देश काफी बौखलाए हुए थे 1987 में
फिलिस्तीनिज्म फलेस्टाइन नेशनल काउंसिल ने अल्जीरिया में नए फिलिस्तीन देश का ऐलान
कर दिया |
जिसकी राजधानी थी जेरूसलम
यहीं से फिलिस्तीन को नए देश का दर्जा मिलने का सिलसिला शुरू हुआ इन विद्रोहों में ही हमास नाम के
एक इस्लामिक एक्सट्रीमिस्ट ग्रुप का गठन हुआ आत्मघाती हमले करना और यहूदियों को
निशाना बनाना हमास की गतिविधियों में शामिल था वक्त बीता तो हमास ने बतौर संगठन
खुद को बहुत ज्यादा मजबूत कर लिया इजराइल और कई पश्चिमी देशों ने हमास को आतंकवादी
संगठन घोषित कर रखा है आज यही हमास इजराइल समेत दूसरे कई देशों के लिए बड़ी
परेशानी भी बना हुआ है हमास और दूसरे संगठनों ने यहूदियों के खिलाफ जो विद्रोह
किया इन्हें इंति फादास हैं अरब में इसका मतलब होता है बाहर निकालना |
यहां इजराइल से यहूदियों
को निकालने की बात चल रही थी कुछ सालों तक यह सब चला और जब बात हाथ से निकलने लगी
तो दोनों तरफ के नेताओं को शांति समझौते की सुध आई विश्व इतिहास में जब भी आप
इजराइल और फिलिस्तीन के झगड़े के बारे में पढ़ते होंगे तो आपने ओस्लो पीस अकॉर्ड
का नाम जरूर सुना होगा यह समझौते 1993 में हुए लेकिन इससे पहले फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले
पीएलओ और इजराइल के बीच कई महीनों की बातचीत चली थी सोचने वाली बात यह है कि इन
समझौतों को ओस्लो पीस अकॉर्ड क्यों कहा गया दरअसल इस बातचीत को शुरू करने का क्रेडिट नॉर्वे
के एक सोशियोलॉजिस्ट रजे लॉसन को दिया जाता है समझौते पर दस्तखत करने से पहले जो
कई महीनों की बातचीत का दौर चला था वह सब नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में ही हो रहा
था |
आखिरकार सितंबर 1993 में वाइट हाउस
में एक बैठक हुई वही वाइट हाउस जहां से मिडिल ईस्ट के भाग्य का निर्धारण होता है
बैठक में एक तरफ थे इजराइल के प्रधानमंत्री इजाक रिबन दूसरी तरफ थे पीएलओ के
मुखिया यासिर अराफात और मध्यस्थता कर रहे थे अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन
दोनों के बीच शांति समझौतों पर दस्तखत हुए इजराइल यह मानने को राजी हो गया कि पीएलओ
ही फिलिस्तीन का
प्रतिनिधि है इसके एवज में पीएलओ इस बात के लिए मान गया कि इजराइल वाकई में एजिस्ट
करता है |
दोनों पक्ष इस बात पर
सहमत हो गए कि एक फिलिस्तीन अथॉरिटी का गठन होगा अथॉरिटी को अधिकार दिए गए कि वह
अगले 5 सालों के लिए
वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में सरकारी कामकाज को संभाले और उन पर निगरानी रखें
फिलिस्तीन अथॉरिटी को और ज्यादा ताकत देने के लिए 1995 में दोनों पक्षों के बीच मिस्र के तबा में फिर
से बैठक हुई और ओस्लो शांति समझौते के दूसरे दौर की बातचीत हुई शांति समझौते पर
दस्तखत हुए और तय हुआ कि गाजपट्टी से अब इजराइल अपनी आर्मी को हटा लेगा वेस्ट बैंक का
बंदर बांट कर दिया गया जिसमें कुछ हिस्सा इजराइल के कब कब्जे में रहा तो कुछ पर
फिलिस्तीनी अथॉरिटी को अधिकार दिया गया कुछ हिस्से को दोनों के भरोसे छोड़ दिया
गया समझौते की एक पूरी श्रृंखला चली और नतीजा यह हुआ कि वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी
जैसे रणनीतिक इलाकों में इजराइल की पकड़ कमजोर होने लगी |
अब यह बात इजराइल के कुछ
लोगों के गले से नीचे नहीं उतर रही थी इसके बुरे नतीजे भी आने वाले थे हुआ भी कुछ
ऐसा ही तबा समझौते को अभी दो महीने ही हुए थे कि एक इजराइली एक्सट्रीमिस्ट ने इजराइल के
प्रधानमंत्री रिबिन की ही हत्या कर दी हत्या इस बात को लेकर हुई कि रिबिन ने ओस्लो
अकॉर्ड आखिर किया क्यों जबकि यह यहूदी धर्म के खिलाफ है रिबन की हत्या के बाद
ओस्लो अकॉर्ड मानो खत्म सा हो गया स्थिति तनावपूर्ण थी तो हमास ने भी इसका फायदा उठाया
और इजराइल पर एक के बाद एक कई हमले किए अगले साल चुनाव होने वाले थे जिसमें शायद
इजराइल और फिलिस्तीन का भविष्य लिखा जाता हुआ भी कुछ ऐसा ही इजराइल में ओस्लो
अकॉर्ड का विरोध करने वाली पार्टी के नेता बेंजामिन नेतनयाहू को जीत हासिल हुई |
बेंजामिन नेतनयाहू इसराइल
के सबसे चहेते नेताओं में से एक रहे हैं जो अपने मजबूत राष्ट्रवादी विचारों और
बेबाक छवि के लिए जाने जाते हैं नेतनयाहू ने फिलिस्तीन की मांग पर विरोध दर्ज किया
क्योंकि ओस्लो समझौता अमेरिका की अगुवाई में हुआ था इसलिए थोड़े दबाव में आकर
नेतनयाहू को कुछ फैसले फिलिस्तीन के पक्ष में भी लेने पड़े 1999 में आम चुनाव
हुए तो नेतनयाहू की हार हो गई एहुद बराक नए प्रधानमंत्री बने तो ओस्लो एकॉर्ड भी
कुछ पटरी पर लौटी यानी यह तय हुआ कि तब इजराइल सेना के स्तर पर थोड़ी नरमी बरते और
फिलिस्तीन को उसका अधिकार मिलेगा बराक ने एक तरफा फैसला लेते हुए दक्षिणी लेबनान
से अपनी सेना को वापस बुला लिया |
वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी
पर आखिरी फैसला लेने पर भी बात हुई लेकिन समझौता आखिर में नहीं हो पाया इजराइली
सरकार कुछ ढीली पड़ रही थी और फिलिस्तीन के लिए कुछ ज्यादा उदार हो रही थी और यह
बात विपक्षी दल लेकट पार्टी को पच नहीं रही थी यह वही पार्टी है जिससे बेंजामिन
नेतनयाहू आते हैं और 99 के चुनावों में
जिस से शिकस्त मिली थी इधर फिलिस्तीनी भी जो कुछ उन्हें मिल रहा था उस पर राजी
नहीं थे और गुस्से में थे सितंबर 2000 में लिकुड पार्टी के कट्टर यहूदी नेता एरियल शेरोन ने
अचानक जेरूसलम में बने टेंपल माउंट का दौरा किया टेंपल माउंट यहूदी धर्म में सबसे
पवित्र जगहों में से एक है इसके पास ही है अल अकसा मस्जिद इस मस्जिद को पैगंबर
मोहम्मद से जोड़कर देखा जाता है अल अकसा की पाक सरजमी पर एक यहूदी के पैर पड़ने से
यहां विद्रोह शुरू हो गए दंगे हुए आत्मघाती हमले हुए और हजारों जाने गई यह दंगे
सालों तक चले चूंकि शुरुआत अलक मस्जिद से हुई थी लिहाजा जैसे-तैसे एक युद्ध विराम
समझौता हुआ इजराइल इस बात के लिए मान गया कि गाजा पट्टी से जल्द से जल्द अपनी सेना
को वो वापस बुला लेगा |
2005 में इजराइल ने गाजा पट्टी(GAZA PATTI)से बुलाई अपनी सैन्य टुकड़ी :
साथ ही यहां अब कोई भी
यहूदी नहीं रहेगा आखिरकार 2005 में गाजा पट्टी
से इजराइल ने अपनी सैन्य टुकड़ी को वापस बुला लिया माहौल थोड़ा शांत ही हुआ था कि 2006 में इजराइल और
लेबनान के बीच एक और युद्ध हो गया आफत खत्म नहीं हुई रही सही कसर हमास ने पूरी कर
दी इजराइल के लिए बड़ा सिरदर्द बनने वाला था हमास वजह थी 2006 में फिलिस्तीन
के चुनाव में हमास की जीत अब हमास ही फिलिस्तीन का भाग्य विधाता बन गया इसका एक ही
टारगेट था इजराइल को खत्म करना और इजराइल में भी फिलिस्तीन बनाना 2008 इसके बाद 2012 फिर 2014 में हमास ने
इजराइल पर कई हमले किए इजराइल में आए दिन होने वाले हमलों में हमास का सबसे बड़ा
हाथ था 2021 और 2023 में भी हमास ने
इजराइल पर हमले की शुरुआत कर दोनों देशों के बीच युद्ध को भड़काया इतने युद्ध और
समझौते होने के बाद भी स्थिति बहुत ही बदतर है इजराइल और फिलिस्तीन का नक्शा किसी
को समझ नहीं आता जेरूसलम आखिर किसका है यह समझ नहीं आता इतना जरूर है कि ज्यादातर
देश अब फिलिस्तीन को भी मान्यता देने लगे हैं आज की तारीख में यूएन के 75 पर से ज्यादा
सदस्य देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं भारत ने 1988 में ही फिलिस्तीन
के वजूद को मान लिया था जो मोटे तौर पर माना जाता है और जो कागजों में लिखा है वह
है कि दक्षिणी में दो देश हैं एक है इजराइल और एक है अरब देश फिलिस्तीन और इसे कहा
जाता है टू स्टेट सॉल्यूशन हैरानी इस बात की भी है कि खुद नेतनयाहू भी टू स्टेट
सॉल्यूशन को मानते हैं लेकिन वे दबाव में हैं कि इसे ना माने कुछ लोग नेतनयाहू पर
आरोप लगाते हैं कि आखिरकार फिलिस्तीन में यहूदी बस्तियां बनाने का काम किसने किया
क्यों इजराइली पुलिस और सेना बेकसूर फिलिस्तीन में ऐसा करके ही हमास और
हिज्बुल्लाह को भड़काया हैं जिसका अंजाम मासूम लोगों को भुगतना पड़ता है |
दूसरी तरफ इजराइल समर्थक
कहते हैं कि यह देश चारों तरफ से इस्लामिक देशों से घिरा हुआ है इतना ही नहीं इन
देशों में पनप रहे हिज्बुल्लाह जैसे आतंकी संगठन इजराइल को डराने में लगे हैं कभी
उत्तर से हिज्बुल्लाह हमला बोलता है तो कभी पश्चिम से हमास ईरान भी धमकी देने से
पीछे नहीं हटता कुल मिलाकर फिलिस्तीन के मुद्दे पर लगभग सभी इस्लामिक देश इजराइल
के विरोध में एक होकर खड़े हैं अकेले होने के बाद भी इजराइल जवाब देने से नहीं
चूकता आखिर वह भी अपनी उपस्थिति कैसे दर्ज करें वैसे भी अरब के कुछ देशों के साथ
उसके संबंध पहले से बेहतर हो रहे हैं इसलिए व्यापार के इस दौर में उसके अब दोस्त
भी हमास या किसी और संगठन का साथ नहीं देंगे इस बात को भी इजराइल अच्छे से जानता
है |
7 अक्टूबर 2023 को हमास(HAMAS) ने किया हमला :
इजराइल और फिलिस्तीन के बीच अभी जो युद्ध चल रहा है उसकी शुरुआत पिछले साल हमास ने की थी इजराइल के मुताबिक एक आतंकी हमले में हमास ने 1300 से ज्यादा लोगों की जान ले ली कई सौ लोगों को बंधक बना लिया नतीजा यह हुआ कि नितनयाहू को युद्ध की घोषणा करनी पड़ी इसके बाद इजराइल ने इस बात में फर्क नहीं किया कि उसका टारगेट मिलिट्री है या फिर सिविलियन क्या सैन्य अड्डा क्या अस्पताल और क्या स्कूल किसी को भी इजराइल ने नहीं छोड़ा हजारों बच्चे मरे हैं इंसान को जिंदा रहने के लिए खाना पानी की जो बुनियादी जरूरत होती है उसे भी रोका गया संक्रमण से लोग मर रहे हैं इजराइल ने कसम खा रखी है कि वह फिलिस्तीन में हमास को खत्म करके ही दम लेगा चाहे इसका अंजाम किसी को भी भुगतना पड़े युद्ध में जघन्यता की हदें पार हो चुकी हैं अमेरिका जैसे देशों ने भी अपील की है लेकिन अब मामला शांत होता नहीं दिख रहा पड़ोसी देश इजराइल के खिलाफ औपचारिक तौर पर युद्ध में नहीं है लेकिन उनकी जमीन का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है करोड़ों अरबों रुपए मानव विकास में लगने की बजाय मिसाइलों और गोला बारूद में फूंके जा रहे हैं !
सोचने वाली बात यह है कि क्या इन
दोनों के झगड़े का फायदा कोई तीसरा उठा रहा है और यह सवाल लोगों के जहन में अब तक
है कि आखिर कब्जा किया किसने हमने आपको पूरी कहानी बता दी है हमास को ये अंदाजा
नहीं होगा की वो जो कर रहा है उसके परिणाम इतने घातक होगें इसीलिए जो काम करें सोच
समज कर करें जब हमास ने गाजा में निर्दोष लडकियों कर के नग्गा घुमाया था तो यही
निर्दोष गाजावासी जश्न मना रहे थे तो अब आप फैसला ये भी करें की क्या जश्न मानना
उचित था ?
